Uttrakhand

मदरसा छात्रवृत्ति वितरण गड़बड़ियों में आएगी पारदर्शिता : मुख्यमंत्री धामी

टिहरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभाओं की मुख्यमंत्री घोषणाओं और अन्य कार्यों की समीक्षा करते मुख्यमंत्री धामी

– विधेयक के लागू होते ही मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम और गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम एक जुलाई 2026 से समाप्त हो जाएगा

– अब अन्य अल्पसंख्यक समुदायों जैसे–सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी को भी मिलेगी सुविधा

भराड़ीसैंण,(गैरसैंण) 20 अगस्त (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 पास होने पर खुशी जताते हुए कहा कि अब अल्पसंख्यक संस्थानों की मान्यता केवल मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं रहेगी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अभी तक अल्पसंख्यक संस्थानों की मान्यता केवल मुस्लिम समुदाय तक सीमित थी। वहीं मदरसा शिक्षा व्यवस्था में वर्षों से केंद्रीय छात्रवृत्ति वितरण में अनियमितताएं, मिड-डे मील में गड़बड़ियां और प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी जैसी गंभीर समस्याएं सामने आई थी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के लागू होने के साथ ही मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम और गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम एक जुलाई 2026 से समाप्त हो जाएगा।

बुधवार को विधानसभा में उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक- 2025 पारित किया गया। अब यह विधेयक राजभवन जाएगा और राज्यपाल से मंजूरी मिलने बाद कानून बन जाएगा।

मदरसा बोर्ड की जगह अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम बनाने को लेकर कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह का कहना है कि सरकार के पास ना तो करने के लिए कुछ है और ना ही बताने के लिए। इसीलिए सरकार मुद्दों से भटककर अल्पसंख्यक की कल्याण की बात कर रही है।

बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार अल्पसंख्यक कल्याण के नाम अल्पसंख्यक पिटाई अभियान चला रही है। फारसी, सिक्ख, ईसाई और बौद्ध समुदाय के वोट बैंक को साध रही है और जनता के बीच यह मैसेज दे रही है कि सरकार ने मुस्लिम लोगों को ठीक कर दिया।

इस विधेयक में मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों में गुरुमुखी और पाली भाषा का अध्ययन भी संभव होगा। उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019 को 01 जुलाई, 2026 से निरस्त कर दिया जाएगा।

प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत अब अन्य अल्पसंख्यक समुदायों जैसे–सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी को भी यह सुविधा मिलेगी। यह देश का पहला ऐसा अधिनियम होगा जिसका उद्देश्य राज्य में अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से स्थापित शैक्षिक संस्थानों को मान्यता प्रदान करने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करना है। साथ ही शिक्षा में गुणवत्ता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करना है।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं:

-प्राधिकरण का गठन: राज्य में उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा, जो अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा प्रदान करेगा।

-अनिवार्य मान्यता: मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन या पारसी समुदाय द्वारा स्थापित किसी भी शैक्षिक संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा पाने के लिए प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य होगा।

-संस्थागत अधिकारों की सुरक्षा:अधिनियम अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की स्थापना एवं संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्टता बनी रहे।

-अनिवार्य शर्तें: मान्यता प्राप्त करने के लिए शैक्षिक संस्थान का सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकरण होना आवश्यक है। भूमि, बैंक खाते एवं अन्य संपत्तियां संस्थान के नाम पर होनी चाहिए। वित्तीय गड़बड़ी, पारदर्शिता की कमी या धार्मिक एवं सामाजिक सद्भावना के विरुद्ध गतिविधियों की स्थिति में मान्यता वापस ली जा सकती है।

-निगरानी एवं परीक्षा: प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षा उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड की ओर से निर्धारित मानकों के अनुसार दी जाए और विद्यार्थियों का मूल्यांकन निष्पक्ष एवं पारदर्शी हो।

-अधिनियम का प्रभाव: राज्य में अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को अब पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से मान्यता मिलेगी।

-शिक्षा की गुणवत्ता के साथ-साथ अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे।

-राज्य सरकार के पास संस्थानों के संचालन की निगरानी करने और समय-समय पर आवश्यक निर्देश जारी करने की शक्ति होगी।

(Udaipur Kiran) / राजेश कुमार

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