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अपडेट…..दुर्गापूजा अनुदान मामले पर हाईकोर्ट में बहस, अगली सुनवाई सोमवार को पील की

राज्य सरकार ने की याचिका खारिज करने की अपील

कोलकाता, 20 अगस्त (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दुर्गापूजा समितियों को दिए जाने वाले अनुदान पर एक बार फिर कानूनी विवाद खड़ा हो गया है। इस मुद्दे पर दायर जनहित याचिकाओं को खारिज करने के लिए बुधवार को राज्य सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में औपचारिक अपील की।

एडवोकेट जनरल किशोर दत्त ने अदालत के सामने दलील दी कि “हर साल यह मामला उठता है, मगर पूजा समाप्त होते ही याचिकाकर्ता और लोग इसे भूल जाते हैं। चूंकि इसका कोई व्यावहारिक आधार नहीं है, इसलिए याचिका को खारिज किया जाना चाहिए।”

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति स्मिता दास दे की डिवीजन बेंच में हुई।

वहीं, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने राज्य सरकार के रुख का कड़ा विरोध किया। उनका तर्क था कि सार्वजनिक खजाने से धार्मिक आयोजनों को अनुदान देना संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि “एक ओर अनुदान की राशि लगातार बढ़ाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य जरूरी क्षेत्रों के बिलों का भुगतान समय पर नहीं हो रहा। इसके अलावा अनुदान के उपयोग का कोई ठोस ऑडिट भी उपलब्ध नहीं है।”

अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी, लेकिन सुनवाई बुधवार को पूरी नहीं हो सकी। अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस वर्ष प्रत्येक पूजा समिति को एक लाख दस हजार रुपये का अनुदान देने का निर्णय लिया है, जो पिछले वर्ष के 85 हजार की तुलना में लगभग तीस प्रतिशत अधिक है। राज्य की करीब 45 हजार पूजा समितियों को यह सहायता मिलने पर कुल खर्च लगभग 495 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।

इसी निर्णय को चुनौती देते हुए दो जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं।

इनमें से एक याचिका दुर्गापुर निवासी सौरव दत्ता ने दायर की है, जिन्होंने पिछले वर्ष भी इसी मुद्दे पर याचिका दाखिल की थी, लेकिन तब अदालत ने उस याचिका को खारिज कर दिया था।

गौरतलब है कि वर्ष 2018 में दुर्गा पूजा समितियों को आर्थिक सहायता देने की परंपरा शुरू हुई थी, जब यह राशि मात्र दस हजार रुपये थी। इसके बाद यह क्रमशः 2019 में पच्चीस हजार रुपये, फिर हर साल धीरे-धीरे बढ़ते हुए जुलाई 2023 में पचासी हजार रुपये हुई, और अब 2025 में एक लाख दस हजार रुपये कर दी गई है।

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(Udaipur Kiran) / धनंजय पाण्डेय

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