
कानपुर, 19 अगस्त (Udaipur Kiran) । यह बात अक्सर अनदेखी रह जाती है कि तकनीक ने चिकित्सा क्षेत्र में कितना बड़ा योगदान दिया है। एक साधारण स्टेथोस्कोप भी तकनीक की देन है। आज डॉक्टरों और इंजीनियरों को साथ आकर स्वास्थ्य सेवाओं के समाधान खोजने होंगे, ताकि रोजमर्रा की स्वास्थ्य समस्याओं को सरलता से हल किया जा सके। यह बातें मंगलवार को आईआईटी कानपुर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान प्रो. दिगंबर बेहरा ने कही।
चिकित्सा और तकनीक के क्षेत्र में एक अनोखी पहल के तहत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) ने नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज (एनएएमएस) और जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर के सहयोग से मिड-टर्म कॉन्फ्रेंस MIDNAMSCON 2025 और सीएमई वर्कशॉप का सफल आयोजन किया। यह आयोजन चिकित्सा और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हो रहे बदलावों और आपसी सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
इस सम्मेलन में देशभर के 70 से अधिक विशेषज्ञों और प्रोफेसरों ने वक्ता और पैनलिस्ट के रूप में भाग लिया, जिससे यह आयोजन स्वास्थ्य और तकनीक के क्षेत्र के विचारकों के सबसे विविध सम्मेलनों में से एक बन गया। कार्यक्रम में लगातार सत्र, चर्चाएं और छात्रों द्वारा आयोजित गतिविधियाँ शामिल थीं, जिससे पूरे आयोजन में उत्साह और ज्ञान का आदान-प्रदान बना रहा।
कार्यक्रम की शुरुआत में प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि इंजीनियरिंग और चिकित्सा का संगम भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई दिशा देने में मदद कर सकता है। कैसे आईआईटी कानपुर और प्रमुख मेडिकल संस्थान मिलकर हेल्थटेक क्षेत्र में बड़ी प्रगति कर सकते हैं।
मुख्य अतिथि डॉ. शिवकुमार कल्याणरमन ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे वैज्ञानिक और शैक्षणिक शोध को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के बारे में जानकारी दी और शोधकर्ताओं एवं डॉक्टरों से इनका लाभ उठाने की अपील की।
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि आईआईटी कानपुर में हम यह दृढ़ता से मानते हैं कि इंजीनियरिंग और चिकित्सा का संगम हमारे समय की कुछ सबसे जटिल स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान निकालने की कुंजी है। MIDNAMSCON 2025 जैसे कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं, जहां चिकित्सक, अकादमिक विद्वान और तकनीकी विशेषज्ञ एक साथ मिलकर ऐसे समाधान विकसित करते हैं जो लैब से सीधे मरीजों तक पहुँच सकें। ये समाधान नवाचारी, बड़े पैमाने पर लागू करने योग्य और प्रभावशाली होते हैं। मैं प्रो. अशोक कुमार, डॉ. चूरामणि और पूरी आयोजन समिति को इस सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने कहा कि एआई एक उपकरण है, न कि मानव बुद्धि का विकल्प। उन्होंने कहा कि इंजीनियरों, नवप्रवर्तकों और डॉक्टरों को साथ आकर रचनात्मक विचारों पर मिलकर काम करना चाहिए।
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप
