
नई दिल्ली, 15 अगस्त (Udaipur Kiran) । दिल्ली विधानसभा में 79वें स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित समारोह में बीएसएफ बैंड और रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से परिसर देशभक्ति की ऊर्जा और उल्लास से गूंज उठा। दिल्ली के लोग आज 115 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक विधानसभा इमारत में 79वें स्वतंत्रता दिवस के उत्सव में शामिल हुए।
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) बैंड के जोशीले देशभक्ति गीतों ने उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और लोग तालियों और जयघोष से उनका उत्साहवर्धन करते रहे। साहित्य कला परिषद के रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने वातावरण को और भी जीवंत बना दिया, जिससे दर्शकों के चेहरे खुशी और गर्व से खिल उठे। एकता और गर्व से ओतप्रोत नागरिक इस अवसर की यादें अपने दिलों में संजोकर लौटे। समारोह में विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता और अन्य विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। उन्होंने आगंतुकों से संवाद कर दिल्ली की लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में विधानसभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यही वह विधानसभा है जहां महात्मा गांधी, विट्ठलभाई पटेल, लाला लाजपत राय और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने स्वतंत्रता का शंखनाद किया था। यह दिन हमें गर्व के साथ भारत की यात्रा की याद दिलाता है—औपनिवेशिक शासन से निकलकर विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने तक। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता को नमन किया। इस दौरान उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन महादेव का विशेष उल्लेख करते हुए इन्हें साहस और समर्पण के प्रतीक बताया। गुप्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ नेतृत्व ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया है, भारत की वैश्विक उपस्थिति को बढ़ाया है और आत्मनिर्भर भारत के विजन के माध्यम से आत्मनिर्भरता, नवाचार और सर्वसमावेशी विकास के प्रति नागरिकों को प्रेरित किया है।
गुप्ता ने बताया कि यह भारत की पहली संसद थी, जहां महात्मा गांधी तीन बार पधारे। उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में हुए जोशीले प्रदर्शनों का उल्लेख किया और वह ऐतिहासिक क्षण भी याद किया जब विट्ठलभाई पटेल एक शताब्दी पहले इस विधानसभा के पहले निर्वाचित अध्यक्ष बने। उन्होंने कहा कि इन्हीं दीवारों के बीच लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे महान नेताओं ने ब्रिटिश नीतियों को साहसपूर्वक चुनौती दी थी। विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यहीं रोलेट एक्ट के विरोध से असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने ब्रिटिश शासन के दमनकारी स्वरूप को उजागर किया।
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(Udaipur Kiran) / धीरेन्द्र यादव
