
जगदलपुर, 15 अगस्त (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ में दशकों से नक्सलवाद की भयावह छाया में जी रहे बस्तर संभाग के बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों के कर्रेगुट्टा सहित 29 गांवों में आज 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा शान से फहराया गया। अब तक जहां नक्सलियाें के लाल-काले झंडे की प्रतीकात्मक उपस्थिति ही देखी जाती थी वहीं पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा कैंपों की स्थापना और सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई व स्थानीय लोगों के सहयोग से अब इन गांवों में लोकतंत्र की वापसी हुई है।
जनसंपर्क के सहायक संचालक अर्जुन पाण्डेय ने बताया कि नारायणपुर के 11, बीजापुर के 11 और सुकमा के 7 गांव अब पूरी तरह नक्सल मुक्त हो चुके हैं। यह बस्तर के बदलते परिदृश्य राज्य और केंद्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, सुरक्षा बलों के अथक प्रयासों और सबसे महत्वपूर्ण इन क्षेत्रों के आम ग्रामीणों के जीवन में आ रही नई उम्मीद की एक जीवंत मिसाल है। उन्हाेंनेे बताया कि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा की काली पहाड़ी वही इलाका हैं, जिसमें 21 दिनों तक चले ऑपरेशन में नक्सलियों के गढ़ को ध्वस्त कर 31 नक्सलियाें काे ढेर कर दिये गए थे और 400 से अधिक आईईडी और 40 हथियार के साथ बड़े पैमाने पर राशन सामग्री बरामद की गई थी।
अर्जुन पाण्डेय ने बताया कि 15 अगस्त 2025 को इन 29 सभी गांव बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों में फैले हुए हैं। इनमें से कई गांव ऐसे हैं जो पहले नक्सली गतिविधियों के केंद्र बिंदु माने जाते थे। जिनमें बीजापुर जिले के कोंडापल्ली, जीड़पल्ली, जीड़पल्ली-2, वाटेवागु, कर्रेगुट्टा, पिड़िया, गुंजेपर्ती, पुजारीकांकेर, भीमारम, कोरचोली एवं कोटपल्ली, नारायणपुर जिले के गारपा, कच्चापाल, कोडलियार, कुतूल, बेड़माकोट्टी, पदमकोट, कांदूलनार, नेलांगूर, पांगुड़, होरादी एवं रायनार तथा सुकमा जिले के तुमालपाड़, रायगुडे़म, गोल्लाकुंडा, गोमगुड़ा, मेटागुड़ा, उसकावाया और नुलकातोंग शामिल हैं। इन गांवों में तिरंगा फहराने का मतलब है कि अब यहां राज्य का शासन स्थापित हो चुका है।
उन्हाेंने बताया कि बस्तर संभाग विशेषकर बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिले दशकों से वामपंथी उग्रवाद, जिसे आमतौर पर नक्सलवाद के नाम से जाना जाता है, का गढ़ रहा है। ये क्षेत्र घने जंगल, दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां और जनजातीय आबादी की बहुलता के कारण नक्सलियों के लिए छिपने और अपनी गतिविधियों को अंजाम देने का एक सुरक्षित ठिकाना बन गए थे। नक्सलियाें ने इन क्षेत्रों में अपनी समानांतर सत्ता स्थापित कर रखी थी, जहां उनका फरमान ही कानून माना जाता था। स्कूल बंद कर दिए जाते थे, सड़कें नहीं बनने दी जाती थीं और विकास परियोजनाओं को बाधित किया जाता था।
ग्रामीणों को अपनी मर्जी के खिलाफ नक्सलियों का साथ देना पड़ता था और ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते थे। अपहरण, हत्या, जबरन वसूली और हिंसा की वारदातें आम बात थीं। इन गांवों में राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय भावनाओं का खुलकर प्रदर्शन करना खतरे से खाली नहीं था। अक्सर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर भी, नक्सलियों के दबाव के चलते इन गांवों में तिरंगा फहराना संभव नहीं हो पाता था। कई बार तो उनकी उपस्थिति के कारण लाल-काले झंडे फहराए जाते थे, जो उनके अपने विचारधारा का प्रतीक था। इस प्रकार इन गांवों के लोग आजादी के बाद भी एक तरह की आंतरिक गुलामी और डर के साये में जी रहे थे।
उन्हाेने बताया कि सुरक्षा बलों के लगातार दबाव और नक्सली कैडरों के आत्मसमर्पण के कारण नक्सली नेतृत्व कमजोर हुआ है। कई महत्वपूर्ण नक्सली नेताओं को मार गिराया गया है या उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। इसके साथ ही सरकार ने इन क्षेत्रों में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी है, जिसके तहत नियद नेल्लानार योजना के अन्तर्गत सड़क निर्माण, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार शामिल है। प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा जैसी योजनाएं सीधे ग्रामीणों तक पहुंचाई जा रही हैं, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है और वे मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। इसके साथ ही पिछले 5 महीनों में बीजापुर जिले में 12 कैंपों की स्थापना की गई है, जो सुरक्षा और विकास दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। ग्रामीणों को यह महसूस कराया जा रहा है कि सरकार उनके साथ है और उनके बेहतर भविष्य के लिए प्रतिबद्ध है।
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(Udaipur Kiran) / राकेश पांडे
