Uttar Pradesh

आईआईटी के पूर्व कर्मचारी के बच्चे संस्थान से अपने जुड़ाव को बखूबी निभा रहे : प्रो. अमेय करकरे

कार्यक्रम के दौरान लिया गया ग्रुप फोटो

कानपुर, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । यह देखना बहुत खास है कि पूर्व कर्मचारी के बच्चे संस्थान से अपने जुड़ाव को इस तरह निभा रहे हैं। यह सहयोग हमारी समावेशी स्वास्थ्य सेवा की सोच को मजबूत करता है। यह बातें गुरुवार को आईआईटी कानपुर के डीन प्रो. अमेय करकरे ने कही।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) से जुड़े गुप्ता परिवार ने एक भावुक और सराहनीय कदम उठाते हुए गंगवाल स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी में ज़रूरतमंद मरीजों के लिए एक खास आठ बेड वाला वार्ड बनवाया है। यह वार्ड आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मरीजों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इस काम के लिए परिवार ने आईआईटी कानपुर फाउंडेशन (एक अमेरिका में स्थित गैर-लाभकारी संस्था) के ज़रिए आर्थिक मदद दी है।

इस योगदान के पीछे एक भावनात्मक जुड़ाव भी है। मनोज गुप्ता और नीरज गुप्ता जो अमेरिका में ओपलैसेंट आईटी सॉल्यूशंस इंक कम्पनी चलाते हैं, अपने पिता स्वर्गीय एमसी गुप्ता की याद में यह काम कर रहे हैं। पिता ने 1961 से 1997 तक आईआईटी कानपुर में अधीक्षक के तौर पर काम किया था और उन्हें 1987 में संतोषजनक सेवा पुरस्कार भी मिला था। यह नया वार्ड उनके माता-पिता रुकमणि गुप्ता और एमसी गुप्ता की याद में बनाया गया है और इसे ईडब्ल्यूएस वार्ड नाम दिया गया है।

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने इस पहल के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि गंगवाल मेडिकल स्कूल भारत में हेल्थकेयर और मेडिकल टेक्नोलॉजी में बदलाव लाने की हमारी कोशिश का हिस्सा है। ऐसे योगदान से हम एक समावेशी और बेहतर स्वास्थ्य सेवा सिस्टम बना पाएंगे। हम गुप्ता परिवार के इस नेक इरादे और भावनात्मक जुड़ाव के लिए बेहद आभारी हैं।

मनोज गुप्ता ने कहा कि हमारे पिता ने अपना जीवन इस संस्थान को दिया। यह योगदान उनके सम्मान में है और साथ ही उन मूल्यों की झलक भी देता है जो उन्होंने हमें सिखाया है। वह समाज की सेवा और ज़रूरतमंदों की मदद करना है।

ओपलैसेंट आईटी सॉल्यूशंस एक अमेरिका स्थित कम्पनी है जो छोटे और मध्यम बिज़नेस को कानूनी सलाह, डिजिटल मार्केटिंग और वित्तीय सहायता जैसी सेवाएं देती है। कम्पनी के दोनों संस्थापक मनोज और नीरज सामाजिक सेवा में विश्वास रखते हैं और यह योगदान उसी सोच का हिस्सा है।

(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप

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