

—तालाब,कुंड़ों के किनारे पूजा-अर्चना के लिए उमड़ी भीड़,विधि-विधान से षष्ठी माता का पूजन-अर्चन
वाराणसी,14 अगस्त (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि (हल षष्ठी) पर गुरूवार को श्रद्धालु महिलाओं ने अपने संतान के दीर्घ जीवन के लिए ललही छठ का व्रत श्रद्धा और उल्लास के साथ रखा। व्रती महिलाओं ने पूर्वाह्न में शहरी और ग्रामीण अंचल में अपने घर से नजदीक पोखर तालाबों पर जाकर समूह में ललही छठ माता की कथा सुनी और पूजन-अर्चन किया। पर्व पर शहर में ईश्वरगंगी पोखरा, खोजवां संकुलधारा पोखरा, लक्ष्मीकुंड, बरेका स्थित सूर्य सरोवर, कंदवा तालाब पर व्रती महिलाओं की भीड़ देखी गई। पूजन के पूर्व व्रती महिलाएं सामूहिक रूप से बैठकर मंगल गीत गाकर पलाश के पत्ते व कुश से मां का मंडप तैयार किया। उसके बाद षष्ठी माता का श्रृंगार व विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया। पूजन के दौरान मंडप के नीचे छह की संख्या में छोटे कलश स्थापित कर छह तरह का दाना, छह तरह का फल व नैवेद्य देवी को समर्पित किया गया। इसके पश्चात संतान की संख्या के अनुसार कुश में उतनी गांठ लगाकर सिंदूर अर्पण के साथ ही महुआ, तिन्नी का चावल व दही चढ़ाया गया। पूजन के उपरांत इसी को प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया। पूजन के पश्चात व्रती महिलाओं ने सामूहिक रूप से बैठकर कथा का श्रवण किया। सनातन धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। हर छठ का व्रत संतान की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।
वाराणसी औसानगंज के कर्मकांडी पीयूष चौबे ‘तन्नी गुरू’ बताते हैं कि महिलाएं ललही छठ या हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। व्रत के दौरान कोई अन्न नहीं खाती हैं। इस व्रत में तिन्नी का चावल, करेमुआ का साग, पसही का चावल आदि व्रती महिलाएं प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं। इस व्रत में दूध और उससे बने उत्पाद जैसे दही, गोबर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। हलषष्ठी व्रत में भैंस का दूध, दही और घी के प्रयोग की परंपरा है। ईश्वरगंगी तालाब पर ललही छठ पूजन के बाद ईश्वरगंगी की गीता पांडेय,आकांक्षा चौबे ने बताया कि व्रत में ललही छठ माता की पूजा की जाती है। जिन महिलाओं को संतान नहीं होती है ,वे व्रत रखती हैं। पुत्रवती महिलाएं छठ माता से अपने बच्चों की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। ललही देवी की पूजा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति के साथ उनकी उम्र लंबी होती है। तालाब, पोखरा, कुआं आदि के किनारे समूह में एकत्रित होकर पूजा होती है। कुशा और महुआ के पत्ते का पूजन कर इस पर महुआ, तिन्नी के चावल, गुड़ और दही का प्रसाद महिलाएं पुत्र की लंबी उम्र की कामना के साथ वितरित करती हैं। वहीं, नए कपड़ाें पर माताएं हल्दी की छाप भी लगाती हैं।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
