RAJASTHAN

आज़ादी की जंग में जैन समाज का विराट योगदान

jodhpur

संगोष्ठी में इतिहास के अमर अध्याय हुए उजागर

जोधपुर, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । देश की जंगे आज़ादी में जैनों के विराट योगदान विषय पर जैन समता वाहिनी और महावीर शासन स्थापना महोत्सव समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में जैन समाज के स्वतंत्रता संग्राम में किए गए अद्वितीय योगदान को याद किया गया।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता सोहन मेहता ने कहा कि भारतीय इतिहासकारों के अनुसार, यदि महाराणा प्रताप के नेतृत्व में देश की गुलामी के खिलाफ संघर्ष को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना जाए, तो उसके रणनीतिकार और आर्थिक सहयोगी भामाशाह का त्याग तथा मुगलों के खिलाफ युद्ध में ताराचंद का अद्भुत शौर्य उल्लेखनीय है। उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति के रणनीतिकार और क्रांतिकारियों को धन व हथियार उपलब्ध कराने के कारण अंग्रेजों के हाथों पहली फांसी पाने वाले अमीरचंद बांठिया थे। इसी तरह हुक्मीचंद कानूनगो और उनके परिवार को तोप से उड़ा दिया गया। क्रांतिवीर मोतीलाल तेजवात, अमर शहीद लाला लाजपत राय, और वीर राघवचंद गांधी भी जैन समाज से थे।

महावीर शासन स्थापना महोत्सव समिति के राष्ट्रीय महासचिव धनराज विनायकिया ने कहा कि आज़ादी जिस अहिंसा और सत्याग्रह की ताकत पर लड़ी गई और जिसमें अंग्रेजी शासन परास्त हुआ, उस मार्गदर्शन और प्रेरणा के सूत्रधार जैन धर्मनायक एवं गांधीजी के गुरु श्रीमद राजचंद्र थे। उन्होंने यह भी बताया कि आज़ादी के लिए उस समय यूरोप के सबसे बड़े कारोबारी प्राणजीवन मेहता का योगदान सबसे बड़ा था।

महिला जन पंचायत की प्रदेश अध्यक्ष रानी मेहता और सुमित्रा विनायकिया ने कहा कि दांडी यात्रा, जो आज़ादी का सबसे बड़ा मील का पत्थर बनी, उसकी संयोजक जैन जगत की विश्वविख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की दादी सरला बाई थीं। अंग्रेजी शासन के विरोध में विदेश में अंतरराष्ट्रीय रेडियो स्थापित करने वाली उषा मेहता और आज़ादी का प्रतीक तिरंगा सबसे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भेंट करने वाली हंसा मेहता भी जैन समाज की गौरवशाली बेटियां थीं। कार्यशाला का संचालन दीपक सिंघवी ने किया।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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