Madhya Pradesh

स्वतन्त्रता आंदोलन का स्वर्णिम इतिहास का साक्षी है चंबल अंचल

स्वतन्त्रता आंदोलन का स्वर्णिम इतिहास का साक्षी है चंबल अंचल

भिंड, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । भारत में अंग्रेजी हुकूमत कीजड़ें कमजोर करने वाले प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 की क्रांति के स्वर्णिम इतिहास का चंबल अंचल साक्षी है। अंग्रेजों की ताकत के बोलबाले के बावजूद मध्‍य प्रदेश के भिंड जिले के लोगों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का खुलकर साथ दिया था। यहा के लोगों की मदद मिलने से ही महारानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर विजय हासिल की थी। इतिहासकार देवेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि आजादी के लिए जिले के लोगों में दीवानापन था। यहां के लोगों ने एक बार नहीं, बल्कि कई बार अंग्रेजी सैनिकों को मार भगाया था । यही वजह है कि अंग्रेजी हुकूमत ने इस इलाके को दुनियाभर में बदनाम किया।

कालपी में अंग्रेजों से संघर्ष के बाद महारानी लक्ष्मीबाई 26 मई 1858 को भिंड के पास गोपालपुरा पहुंची। यहीं पर देश कीआजादी के लिए ग्वालियर को क्रांति का केंद्र बनाने का निर्णय लिया था। तब लक्ष्मीबाई का जिले के एक लाख लोगों ने साथ दिया था।

लक्ष्मीबाई मिहोना, अमायन, देहगांव, सुपावली, बड़ागांव मुरार में पड़ाव करते हुए ग्वालियर पहुंचीथीं। 1 जून 1858 को ग्वालियर पर विजय हासिल की थी, हालांकि बाद में यहींपर अंग्रेजों से भीषण संग्राम में 18 जून को शहीद हो गईं। भिंड जिले से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई मेंदौलतसिंह नेअंग्रेजों के खिलाफ 7 हजार लड़ाकुओं की फौज तैयार कर ली थी। दबोह, सेंवढ़ा और इटावा क्षेत्र में दौलतसिंह और उनके सहयोगियों के भय से अंग्रेज किसानों से कर नहीं वसूल पाते थे। बुहारा रियासत में दौलतसिंह का नाम उन स्वतंत्रता सैनानियों में सर्वोच्च क्रांतिकारी के रूप में आता है, जिन्होंने अपने पिता चिमनाजी की सीख पर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी। 13 साल तक अंग्रेजों से लोहा लेकर कई इलाकों को स्वतंत्र कराकर फिर कभी ब्रिटिश आधिपत्य के अधीन नहीं होने दिया।पिता के साथ तैयार की विशाल सेना 1857 का यह युद्ध 1859 तक चलता रहा।

चंबल अंचल के कई लोगों को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने कड़ी यातनाएं दी थीं जिसमे अमर सिंह कुशवाह, रघुवीर सिंह कुशवाह, सम्पतराम खलीफा ने भिण्ड में छोटी लाइन की रेल की पटरी उखाड़ी। जिसका उल्लेख का शीनाथ चतुर्वेदी पत्रकार द्वारा सम्पादित रघुवीर सिंह कुशवाह स्मारिका में भी है।

सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भिण्ड के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों मे बटेश्वरी दयाल शर्मा ‘दादा, श्रीनाथ शर्मा ‘गुरू, दीपचन्द्र पालीवाल, रघुवीर सिंह कुशवाह, यशवंत सिंह कुशवाह, सम्पतराम लोहिया, फूलचन्द्र लोहिया, श्रीलाल श्रीवास्तव, गंगाधर मुनीम, हरिकिशनदास भूता, सूबालाल शर्मा, नाथूराम शर्मा, बदन सिंह कुशवाह, जुगल किशोर सक्सेना को 02 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर गिरफ्तार किया गया तथा भिण्ड जेल, ग्वालियर सेन्ट्रल जेल, मुंगावली जेल में रखा गया जिनको जून 1943 में जेल से रिहा किया गया।

चम्बल घाटी में आजादी की जंग का बिगुल एक गुजराती उद्योगपति हरिकिशन दास जाधव जी भूता ने फूंका। उनके साथ हर सेवक मिश्राभी रहे। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल जलाई, बल्कि उसे थामकर सबसे आगे चले ,भिण्ड जनपद के स्वतंत्रता संग्राम और राजशाही के खिलाफ संग्रामों में श्रीनाथ गुरूजी, दादा बटेश्वरी दयाल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

1935 के पूर्व तक आजादी का आन्दोलन सिर्फ उन्हीं जगहों तक सीमित था जहां सीधे अंग्रेजी हुकूमत थी। 09 अगस्त 1942 को बम्बई में हमारे सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन गोपीकृष्ण जैसे-तैसे अंग्रेजों का घेरा तोड़कर बच निकले। वे बचते-बचाते ग्वालियर पहुंचे। वहां उन्होंने संभाग भर की बैठक बुलाई, जिसमें सिर्फ खास-खास लोग बुलाए गए,उसमेभिंड के श्री नाथ गुरु शामिल हुये थेभारत छोड़ो आंदोलन 1942 पूरे देश के साथ जब भिण्ड में भी तेजी से चल रहा था भिण्ड जिले के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बटेश्वरी दयाल शर्मा ‘दादा, यशवंत सिंह कुशवाह, हरिसेवक मिश्रा गिरफ्तार हो चुके थे।

तबगुरु जीपर आंदोलन की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी। तब 02 अक्टूबर 1942 को गांधी जयंती के अवसर पर आपको दीपचन्द्र पालीवाल, जुगलकिशोर सक्सेना, श्रीलाल श्रीवास्तव, गंगाधर मुनीम, सम्पतराम लोहिया, फूलचन्द्र लोहिया, अमर सिंह कुशवाह, रघुवीर सिंह कुशवाह, रामचन्द्र चौधरी, बदन सिंह कुशवाह नाथूराम शर्मा मिहोना, सूबालाल शर्मा, हरिकिशन दास भूता अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जिन्हें बाद में भिण्ड जेल, ग्वालियर सेन्ट्रल जेल, मुंगवली जेल में रखा गया। सन् 1943 में 30 जून को सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ गुरूजी को भी रिहा किया गया।

(Udaipur Kiran) / Anil Sharma

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