


– ‘पर्यावरण से समन्वय’ संगोष्ठी सह प्रशिक्षण कार्यशाला में मुख्यमंत्री बोले-योजनाबद्ध प्रयासों से होगा विकास और प्रकृति का संरक्षण
भोपाल, 11 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाबद्ध तरीके से सामंजस्य स्थापित हो, जिससे विकास के साथ प्रकृति भी संरक्षित रहें। भारत की प्राचीन निर्माण परंपराएं आज भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मार्गदर्शन करती हैं। उन्होंने भोपाल के बड़े तालाब का उदाहरण देते हुए बताया कि यह बिना किसी नदी की मुख्यधारा को रोके, प्राकृतिक चट्टानों के बीच पानी संग्रहित करने की तकनीक से बना था। यह तालाब केवल सजावट की वस्तु नहीं, बल्कि पीने के पानी का स्रोत भी है। इसकी संरचना इस तरह है कि अतिरिक्त पानी स्वतः बाहर निकल जाता है और संरचना की लागत भी कम रहती है। आज सड़क निर्माण में वन्यजीव संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पुलों के नीचे अंडरपास बनाए जा रहे हैं, जिससे बाघ और अन्य जानवर सुरक्षित रूप से गुजर सकें और यातायात भी प्रभावित न हो। यह केवल तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति और विकास के बीच संतुलन की मिसाल है। वर्तमान समय में निर्माण सामग्री की मात्रा, डिज़ाइन की गुणवत्ता और लागत-प्रभावशीलता पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। निर्माण में मात्रा से ज्यादा महत्व गुणवत्ता का है। अभियंता वह है जो विज्ञान, गणित और तकनीक, इन तीनों में समान दक्षता रखते हुए उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करे।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव सोमवार को लोक निर्माण विभाग के ध्येय “लोक निर्माण से लोक कल्याण” को साकार करने की दिशा में ‘पर्यावरण से समन्वय’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी-सह प्रशिक्षण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भोपाल के रवीन्द्र भवन में दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के आरंभ में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम और राष्ट्रगान जन गण मन का सामूहिक गान हुआ। इस अवसर पर लोक निर्माण ने पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता पर केन्द्रित लघु फिल्म का प्रदर्शन भी किया।
ऐसे निर्माण करें जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी हों
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें ऐसे निर्माण करने चाहिए, जिन पर हमें स्वयं गर्व हो और जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी हों। विभागीय दायरे और नियमों के भीतर रहते हुए भी अभियंताओं को रचनात्मक सोच से समाधान खोजने होंगे, जिससे परियोजनाएं गुणवत्ता, लागत और पर्यावरण– तीनों मानकों पर श्रेष्ठ साबित हों। उन्होंने लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह को ‘पर्यावरण से समन्वय’ पर कार्यशाला आयोजन की पहल के लिए बधाई दी और विश्वास जताया कि इस तरह की कार्यशालाएं न केवल तकनीकी ज्ञान बढ़ाने में सहायक होंगी, बल्कि विभाग की कार्यप्रणाली में भी सकारात्मक बदलाव लाएंगी। उन्होंने कहा कि यह संकल्प सिर्फ तकनीकी प्रशिक्षण का नहीं, बल्कि हमारे मन की स्वच्छता, धैर्य और निष्ठा का प्रतीक है, जो सुनिश्चित करेगा कि हम विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी भी पूरी निष्ठा से निभाएं।
विकास की गाड़ी कभी भी पर्यावरण की पटरी से नहीं उतरेगी
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने कहा कि संभवतः यह पहली बार है जब मध्य प्रदेश के सभी अभियंता प्रत्यक्ष और वर्चुअल माध्यम से एक साथ जुड़े हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विशेष रूप से आभार मानते हुए कहा कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि प्रदेश में विकास की गाड़ी कभी भी पर्यावरण की पटरी से नहीं उतरेगी। उन्होंने कहा कि विकास का वास्तविक अर्थ तभी है जब संरचनात्मक प्रगति के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी सुनिश्चित हो। हमारे पूर्वजों ने संरचनाओं का संरक्षण इस प्रकार किया कि आने वाली पीढ़ियों को भी उनका लाभ मिला। उन्होंने उदाहरण दिया कि त्रिची के पास 2000 वर्ष पुराना अनय कट्टू बांध आज भी कार्यरत है, जो भारतीय अभियंताओं की अद्भुत क्षमता का प्रमाण है। इसी तरह मोहन जोदाड़ो से प्राप्त 7000 वर्ष पुरानी ईंटों का उपयोग अंग्रेजों के समय रेल पटरियों के नीचे आधार के रूप में किया गया और वे कई दशकों तक मजबूती से टिकी रहीं। उन्होंने कहा कि यह परंपरा, यह कौशल और यह दृष्टि हमारे संस्कारों में है, जिसे वर्तमान में और भी मजबूत करना होगा।
सड़क के गड्ढों की मरम्मत की समय-सीमा 7 दिन से घटाकर 4 दिन की जाएगी
मंत्री सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में मध्य प्रदेश के अभियंताओं को अन्य राज्यों में भेजकर बेहतर तकनीकों का अध्ययन कराया गया। विभाग ने उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निर्माण कार्यों में प्रयुक्त बिटुमिन केवल सरकारी रिफाइनरियों से ही खरीदने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि लोकपथ मोबाइल ऐप के माध्यम से सड़क मरम्मत व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया है। पहले गड्ढों की मरम्मत की समय-सीमा 7 दिन थी, जिसे हम शीघ्र ही घटाकर 4 दिन करने का निर्णय कर रहे हैं।
पीएम गति शक्ति ने कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी, तेज और प्रभावीशाली बनाया
भास्कराचार्य संस्थान के महानिदेशक टीपी सिंह ने प्रधानमंत्री गति शक्ति परियोजना के उद्देश्यों, उपलब्धियों और भविष्य की संभावनाओं से अवगत कराते हुए कहा कि पीएम गति शक्ति ने विभिन्न विभागों के अलग-अलग डाटा को एकीकृत कर कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी, तेज़ और प्रभावी बनाया है। अब किसी भी भू-भाग की स्वामित्व स्थिति, भूमि का प्रकार (सरकारी, निजी, वन, पंचायत आदि) और उससे संबंधित सभी तकनीकी लेयर्स एक क्लिक में उपलब्ध हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि पहले विभाग अपने-अपने नक्शे अलग स्केल और फॉर्मेट में बनाते थे, जिससे योजना निर्माण में कठिनाई होती थी, लेकिन अब सभी डेटा-सेट तक पहुंच सुनिश्चित कर एकीकृत प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री गतिशक्ति परियोजना विकसित करने में मुख्य सचिव श्री अनुराग जैन के महत्वपूण योगदान का उल्लेख भी किया।
महानिदेशक सिंह ने कहा कि इस परियोजना में जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी, आईटी, स्पेस टेक्नोलॉजी, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को एक साथ जोड़ा गया है। सभी सॉफ्टवेयर और टूल्स मध्यप्रदेश में ही विकसित किए जा रहे हैं, जिससे समय और लागत की बचत के साथ राज्य की तकनीकी क्षमता भी बढ़ी है। एनओसी और अप्रूवल प्रक्रियाओं को फेसलेस और तेज़ बनाने के लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर लगभग तैयार हैं, जिनका प्रयोग कुछ राज्यों में प्रारंभ भी हो चुका है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में पीएम गति शक्ति को बढ़ावा देने में मुख्यमंत्री डॉ. यादव एवं मंत्री राकेश सिंह के सही अलाइनमेंट, पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता और पर्यावरण पर ध्यान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अभियंता केवल तकनीकी निर्माणकर्ता नहीं, विकास के मार्गदर्शक भी
अखिल भारतीय संयोजक एवं पर्यावरणविद् गोपाल आर्य ने कार्यशाला में कहा कि ‘पर्यावरण से समन्वय’ विषय पर आयोजित यह कार्यक्रम न केवल मध्यप्रदेश में, बल्कि संभवतः पूरे देश में अपनी तरह का पहला प्रयास है, जो आने वाले समय में एक नया ट्रेंड स्थापित करेगा। उन्होंने स्वयं को भी अभियंता बताते हुए कहा कि किसी भी देश के विकास के लिए विश्वस्तरीय अधोसंरचना (Infrastructure) का होना अनिवार्य है, परंतु यह विकास पर्यावरण के संतुलन के साथ आगे बढ़ने पर ही सार्थक होगा। उन्होंने कहा कि अभियंता केवल तकनीकी निर्माणकर्ता नहीं, बल्कि समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए विकास के मार्गदर्शक होते हैं। यदि किसी देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र बनना है, तो उसका इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत और पर्यावरण-अनुकूल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पेड़ों की कमी से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण घटेगा, जिससे ग्रीन हाउस गैसें बढ़ेंगी, ओजोन परत को नुकसान होगा, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं गहराएंगी। श्री आर्य ने एक मार्मिक कहानी के माध्यम से समझाया कि प्रकृति हमें जीवनभर निःशुल्क वायु, जल और अन्य संसाधन देती है, परंतु हममें से अधिकांश लोग कभी उसे लौटाने के बारे में नहीं सोचते। उन्होंने वृक्षारोपण को केवल अभियान नहीं, बल्कि सात पीढ़ियों के लिए जीवन बीमा बताया, जो निरंतर ऑक्सीजन, आश्रय और संसाधन प्रदान करता है। उन्होंने जैव विविधता, जल संरक्षण और प्लास्टिक का उपयोग कम करने की दिशा में जनभागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता बताई।
तकनीकी सत्र में पीएम गति शक्ति योजना एवं आधुनिक व पर्यावरण अनुकूल तकनीको पर दी गई जानकारी
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में भास्कराचार्य संस्थान के महानिदेशक टीपी. सिंह के साथ पीएम गति शक्ति योजना पर प्रश्न-उत्तर सत्र आयोजित हुआ। इस दौरान विभाग के लिए विकसित मोबाइल ऐप, जीआईएस पोर्टल, लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम और इंटीग्रेशन सॉल्यूशंस पर विशेषज्ञों ने प्रस्तुतीकरण दिया। इन डिजिटल नवाचारों से योजना, मॉनिटरिंग, रिपोर्टिंग और संसाधन प्रबंधन में पारदर्शिता व दक्षता में वृद्धि होगी। कार्यशाला में प्रदेशभर के लगभग 1700 अभियंता प्रत्यक्ष एवं वर्चुअल रूप से शामिल हुए।
(Udaipur Kiran) तोमर
