

मुंबई,8 अगस्त ( हि.स.) । खाड़ी अभी भी कीचड़ से भरी हुई है… मूर्तियों पर रंग-रोगन हो रहा है, रसायन भरे जा रहे हैं… और फिर भी बोर्डों पर लिखा है – ‘पर्यावरण के अनुकूल गणेशोत्सव!’ यह किसके लिए है? सिर्फ़ विज्ञापनों के लिए? हमारे पर्यावरण के लिए या राजनीतिक प्रतिष्ठा के लिए?इन विचलित करने वाले, हृदय विदारक सवालों से शुरू होकर, ठाणे के पर्यावरण विद्वान और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रशांत सिनकर ने सीधे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक हृदयस्पर्शी और सचेत बयान भेजा है।गणेशोत्सव के नाम पर पर्यावरण का शोषण कहीं न कहीं तो रुकना ही चाहिए। इसके लिए दिए गए बयान में कहा गया है, सांस्कृतिक उत्सव के नाम पर हम हर दिन प्रकृति का दुरुपयोग कर रहे हैं। ‘पर्यावरण के अनुकूल’ शब्द अब सिर्फ़ दिखावा बनकर रह गया है। इसका मूल अर्थ खो गया है… और हम दर्शक बनकर रह गए हैं..।डॉ प्रशांत सिनकर का कहना है कि हालाँकि मूर्ति मिट्टी की बनी होती है, लेकिन उसे कीचड़ से भरी खाड़ी में फेंकना पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। रासायनिक रंग, भड़कीली सजावट, ध्वनि प्रदूषण और अव्यवस्थित विसर्जन व्यवस्था… यह सब हमारी आँखों के सामने हो रहा है। फिर भी, ‘पर्यावरण के अनुकूल’ बोर्ड लगाए जा रहे हैं। उन्होंने दृढ़ता से कहा है कि इन झूठे, भ्रामक नारों से लोगों को गुमराह किया जा रहा है। इसलिए, उन्होंने भावनात्मक अपील करते हुए मुख्यमंत्री से सुझाव दिया है, यह प्यारा शब्द छोड़ो और एक वास्तविक जागरूकता आंदोलन शुरू करो। नाम बदलने से काम चल सकता है – लेकिन तरीका बदलना चाहिए! इसलिए इन्हें सजग गणेशोत्सव,, संस्कार गणेशोत्सव,शाश्वत गणेशोत्सव और सृजन गणेशोत्सव नाम देना चाहिए।
ये सिर्फ़ नाम नहीं हैं, ये एक मानसिक क्रांति होगी। जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति का संरक्षण करेगी। – उनका दृढ़ विश्वास है। मुख्यमंत्री जी, आपने कई सकारात्मक निर्णय लिए हैं… यह एक छोटी सी माँग लग सकती है, लेकिन इसमें हमारा पर्यावरण, हमारी भावनात्मक दुनिया, हमारे गणपति… और प्रकृति के प्रति हमारा प्रेम भी शामिल है।दरअसल यह सिर्फ मिट्टी की मूर्ति नहीं अपितु यह हमारी शाश्वत संस्कृति का प्रतिबिंब है।
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा
