Madhya Pradesh

पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता से संबंधित सभी दस्तावेज सील बंद लिफाफे में कोर्ट को पेश करने होंगे : मप्र हाईकोर्ट

कॉलेजों की मान्यता से संबंधित सभी दस्तावेज सील बंद लिफाफे में कोर्ट को पेश करने होंगे : मप्र हाईकोर्ट

जबलपुर, 8 अगस्त (Udaipur Kiran) ।पैरामेडिकल काउंसिल को जो सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है उसको लेकर हाईकोर्ट में दलील दी ताकि उनका बचाव हो सके। इसको देखते हुए कोर्ट ने निर्देश दिए कि पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता से जुड़े दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपे जाएं। सरकार की ओर से कोर्ट में यह भी तर्क दिया गया कि पैरामेडिकल काउंसिल के गोपनीय दस्तावेज याचिकाकर्ता को नहीं दिए जाने चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह कहा कि यह दस्तावेज देश की सुरक्षा से जुड़े हुए नहीं है। कोर्ट ने यह आदेश दिया कि मान्यता से जुड़े दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपा जाए। पैरामेडिकल काउंसिल ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने याचिकाकर्ता के अधिकार को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर फैसला नहीं लेता तब तक कार्यवाही को रोकने की भी मांग की गई।

उल्लेखनीय है कि जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिविजनल बेंच ने मध्य प्रदेश के सभी पैरामेडिकल कॉलेज में सत्र 2023-24 और 2024-25 के परीक्षाओं और एडमिशन सहित मान्यता पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही पैरामेडिकल काउंसिल और सीबीआई को मान्यता संबंधी सभी फाइलों को पेश करने आदेश दिए थे। इसी बीच पैरामेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की और उन्हें नए सत्र के लिए एडमिशन सहित कॉलेजों को मान्यता देने की राहत मिल गई। जबलपुर हाईकोर्ट की मुख्य पीठ में हुई इस मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पैरामेडिकल काउंसिल ने याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंड एसोसिएशन के याचिका दायर करने के अधिकार को भी चैलेंज किया और कहा कि याचिकाकर्ता को पैरामेडिकल कॉलेज की मान्यता से संबंधित सीबीआई के दस्तावेज नहीं दिए जाने चाहिए।

उस पर लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता विशाल बघेल और अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने पहले भी कोर्ट के समक्ष फोटोग्राफ प्रस्तुत किए हैं। जिसमें एक ही बिल्डिंग में नर्सिंग और पैरामेडिकल दोनों कॉलेज संचालित होते हैं और जब जांच टीम आती है तो जरुरत के हिसाब से कॉलेज के बाहर का बैनर बदल दिया जाता है। कोर्ट ने माना कि प्रथमदृष्टया ही यह समझ में आ रहा है कि मान्यताओं में गड़बड़ियां तो हैं। इसलिए कोर्ट ने सीबीआई और पैरामेडिकल काउंसिल को निर्देश दिया है कि यह दस्तावेज याचिकाकर्ता को ना देते हुए सील बंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपे जाएं। पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि कुछ दस्तावेज सॉफ्ट कॉपी में तैयार हैं जो कोर्ट को आज ही जमा कर दिए जाएंगे और अन्य दस्तावेज भी जल्द कोर्ट को सौंप दिए जाएंगे।

पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने आपत्ति जताई गई। इसमें कॉलेज को दी जा रही मान्यता के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों की कलेक्टर कमेटी के साथ ही एमपीएमएसयू और अब क्वीसीआई भी शामिल है। इसके बाद भी कोर्ट के हस्तक्षेप से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या कोर्ट को किसी पर भरोसा नहीं है? जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिविजनल बेंच ने अपने आदेश में यह लिखा की इसी मामले से जुड़े हुए नर्सिंग घोटाले में यह सामने आया था कि कॉलेजों की जांच में सीबीआई के अधिकारी ही प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार में लिप्त थे। उनके खिलाफ सीबीआई नहीं आपराधिक मामला दर्ज किया था।

कोर्ट ने आदेश में लिखा कि सीबीआई जैसी देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी के अधिकारियों पर भी जब भ्रष्टाचार के आरोप लग जाएं तो फिर कोर्ट किस पर भरोसा करे ? डिविजनल बेंच ने आदेश जारी किया है। इसमें क्वीसीआई को जांच के समय या सुनिश्चित करना होगा कि पैरामेडिकल कॉलेज के पैरामीटर पर ही उस एक ही बिल्डिंग में दूसरा कोई अन्य कॉलेज संचालित ना हो रहा हो। इसके साथ ही कॉलेजों की मान्यता से संबंधित सभी दस्तावेज सील बंद लिफाफे में कोर्ट को पेश करने होंगे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त को तय की गई है।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

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