Maharashtra

शादु मिट्टी मूर्ति से खाड़ी के जंतुओं को खतरा -पर्यावरणविद डॉ प्रशांत

Fauna of gulf is in danger due to statue of shadu

मुंबई,7 अगस्त ( हि,. स) । शादु मिट्टी की मूर्तियाँ पर्यावरण के अनुकूल हैं, इसलिए उन्हें खाड़ी में विसर्जित करने से कोई नुकसान नहीं होता – यह भ्रांति आज भी कई लोगों के मन में गहरी पैठ बनाए हुए है। हालाँकि, वास्तविकता यह है कि अगर शादु मिट्टी को खाड़ी में बड़ी मात्रा में विसर्जित भी किया जाए, तो यह जैव विविधता के लिए खतरा पैदा कर सकती है। इस संबंध में, ठाणे के प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ प्रशांत सिनकर ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे को एक भावुक पत्र दिया है।

डॉ प्रशांत सिनकर ने पत्र में विस्तार से बताया है कि यह सही है कि गणेश उत्सव के दौरान पर्यावरण की दृष्टि से पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) की मूर्तियों का विरोध किया जाता है। हालाँकि, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि शादु मिट्टी के नाम पर खाड़ियों में मूर्तियों का विसर्जन जल प्रवाह, मत्स्य संसाधनों और समुद्री जैव-श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

इस संबंध मे पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ नागेश टेकाले का भी यही मत है उन्होंने कहा कि शादु मिट्टी प्राकृतिक है, यह नदी के किनारे से लाई गई मिट्टी है। जब यह खाड़ी में मिलती है, तो उस खारे पानी में इसका अपघटन बहुत धीरे-धीरे होता है। परिणामस्वरूप, यदि बड़े पैमाने पर विसर्जन होता है, तो गाद अथवा कीचड़ बढ़ जाती है, जल प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और मछलियों का प्राकृतिक आवास प्रभावित होता है। इसके अलावा, मूर्तियों के साथ फेंके जाने वाले रंग, मालाएँ, कपड़ा, थर्मोकोल, प्लास्टिक सीधे प्रदूषण को आमंत्रित करते हैं। प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ प्रशांत सिनकर ने मुख्य मंत्री को लिखे पत्र में बताया है कि शादु मिट्टी मूलतः पर्यावरण के अनुकूल है – यह सच है। लेकिन अगर इसे खाड़ी में फेंक दिया जाए, तो इसकी पर्यावरण मित्रता समाप्त हो जाती है। यदि प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग किया जाता है, तो परिणाम भी उतने ही विनाशकारी होते हैं।

ठाणे कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर और पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ नागेश टेकाले का मत है कि केंद्र सरकार ने ठाणे खाड़ी को रामसर स्थल का दर्जा दिया है। इसलिए, खाड़ी में प्रदूषण को रोकना सभी का प्राथमिक कर्तव्य है। प्रशासन बार-बार कृत्रिम झीलों के उपयोग की अपील कर रहा है। जब घरेलू विसर्जन, अपशिष्ट मिट्टी पुनर्चक्रण, पानी के टैंक और ‘घर पर विसर्जन’ उपलब्ध हैं, तो खाड़ी में मूर्तियों के विसर्जन का कोई पर्यावरणीय कारण नहीं बचता।

इस विषय में पर्यावरणविद और पत्रकार प्रशांत सिनकर का मानना है कि गणेश उत्सव का असली अर्थ तभी साकार होगा जब वह प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलेगा। इसलिए ‘शादु माटी’ का प्रयोग करें, लेकिन उसे खाड़ी में ‘विसर्जित’ न करें। पर्यावरण-अनुकूल होना सिर्फ़ एक नारा नहीं है – इसे अमल में लाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। अगर ठाणे खाड़ी को बचाया जाए, तो वहाँ की जैव-श्रृंखला बेहतर होगी।

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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा

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