
झज्जर, 6 अगस्त (Udaipur Kiran) । पांच दशक पहले स्थापित हुआ बेरी खंड के गांव दुबलधन का कॉलेज अपना अस्तित्व बचाए रखने में तो कामयाब है, लेकिन इतनी आयु के बावजूद यह अपने वैभव और पराक्रम का विस्तार नहीं कर सका। कॉलेज में केवल कला और वाणिज्य संकाय की पढ़ाई होती है। अब ग्रामीणों ने इस संस्था को उच्च कोटि का वैभवशाली विश्वविद्यालय बनाने की ठान ली है। शुरुआत में सरकार से विज्ञान संकाय और विभिन्न विषयों की स्नातकोत्तर कक्षाएं शुरू करने की मांग की है।20 अप्रैल 1973 को इस कॉलेज की आधारशिला रखते हुए तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित ने कहा था कि यहां परिवेश शिक्षा मंदिर की तरह अनुकूल है इसलिए यह कॉलेज उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान बनेगा और शांति निकेतन की तरह ग्रामीण की शिक्षा सेवा करेगा। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह ने इसे देहात का कांगड़ी विश्वविद्यालय कहकर इसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की थी। यहां देश विदेश के छात्र उच्च कोटि की शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस प्रकार दुबलधन सनातन समय से आज तक उच्चत्तर शिक्षा का केंद्र है। लेकिन समय के थपेड़ों के चलते कॉलेज के वैभव और पराक्रम का विस्तार नहीं हुआ। जबकि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से भी यह आयु में पांच साल बड़ा है। जबकि कॉलेज में अब तक कला संकाय के सीमित विषय ही उपलब्ध हैं।गांव के निवासी डॉ. दयानंद कादयान का कहना है कि यह महाविद्यालय सरकारों की बेरुखी का शिकार रहा है। इलाके के लोगों ने इस महाविद्यालय को खड़ा करने के लिए तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया था। लगभग 64 एकड़ भूमि व स्थानीय महिलाओं ने अपने जेवर तक दान देकर इसका सुसज्जित भवन खड़ा कर दिया। 1980 से 1995 तक यहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी पढ़ते थे। इसे मैथ मास्टरों की टकसाल कहा जाता था। अगस्त 1979 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल ने केंद्रीय मंत्री प्रो. शेर सिंह की सिफारिश पर इसे सरकरी काॅलेज बनाया। कॉलेज को बनाने व संचालित करने में प्रो. शेर सिंह व प्रिंसिपल हुकम सिंह आदि विभूतियों का बड़ा योगदान रहा।कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रहे माजरा निवासी प्रो. हुकम सिंह यहां लंबे अरसे तक प्राचार्य रहे और उच्च कोटि का स्टाफ जुटाया। हरियाणा के सुपरिचित इतिहासकार डॉ. रणजीत सिंह भी इस कॉलेज के सरकारी कॉलेज बनते ही पहले प्राचार्य बने और महाविद्यालय को बुलंदियों तक पहुंचाया। प्रो. प्रेमदत्त, तपेश कुमार, जयवंती श्योकंद जैसे प्रोफेसर यहां रहे। राजस्थान के मुख्य सचिव रहे निहालचंद गोयल की जन्म भूमि भी दूबलधन है। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में गणित में टॉप करने वाली प्रिंसिपल सुरेश कुमारी इसी महाविद्यालय की छात्रा रही। लोक संपर्क विभाग हरियाणा में संयुक्त निदेशक राज सिंह कादयान इस महाविद्यालय के छात्र रहे।
वर्तमान में कॉलेज कर्मवीर गुलिया के नेतृत्व में उच्च कोटि का सेवा माहौल देने में प्रयासरत है। विज्ञान और पीजी कक्षाओं के लिए कई वर्षों से आवेदनरत है। क्षेत्र के लोगों ने इस संस्था के परम वैभव को जागृत करने के लिए और इसे उच्च कोटि का विश्वविद्यालय बनाने के लिए कमर कस ली है। 16 अगस्त को इलाके के जागरूक लोगों और एल्यूमिनाई की पंचायत बुलाई है जो इसे विश्वविद्यालय स्तर का संस्थान बनाने की रूपरेखा तैयार करेगी। माजरा निवासी डॉ. दयानंद कादयान का कहना है कि यह महाविद्यालय एनईपी 2020 के सभी मानकों पर खरा उतरता है इसलिए बहुत अच्छा विश्वविद्यालय साबित होगा। पूर्व जिला पार्षद मास्टर जय भगवान कहते हैं, महेंद्रगढ़ के पाली जाट में केंद्रीय विश्वविद्यालय चल सकता है तो दुर्वासा की तपोभूमि तो शिक्षा के मामले में बहुत ही उर्वर है। जबकि नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार करवाया जा रहा है। महर्षि दुर्वासा के नाम पर यहां विश्वविद्यालय स्थापित होना चाहिए। अब देखना है कि 50 वर्ष की आयु पार कर चुका यह कॉलेज विश्वविद्यालय स्तरीय उच्चतर शिक्षा केंद्र बनता है या इसको पुराने ढर्रे पर ही चलाया जाएगा।
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(Udaipur Kiran) / शील भारद्वाज
