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छत्तीसगढ़ : आत्महत्या के मामले में आरोपित द्वारा एफआईआर को रद्द किए जाने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका पर सुनवाई

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर

बिलासपुर, 5 अगस्त (Udaipur Kiran) । बिलासपुर के चकरभाठा में बुजुर्ग द्वारा आत्महत्या के मामले में आरोपित ने अपने ऊपर की गई एफआईआर को रद्द किए जाने की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका लगाई है। याचिकाकर्ता ने झूठे और मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर पुलिस द्वारा दुर्भावनावश दर्ज की गई एफआईआर को रद्द किए जाने मांग की है।

सोमवार शाम उच्च न्यायालय में सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अब्दुल वहाब खान को सुना। इसके साथ ही राज्य की ओर से उपस्थित पैनल वकील और प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से अधिवक्ता को भी सुना गया। वहीं आदेश में कहा कि पुलिस स्टेशन चकरभाटा में दर्ज अपराध संख्या 230/2024 की एफआईआर से स्पष्ट है कि प्रतिवादी संख्या 2 का भी उसमें सह-अभियुक्त के रूप में नाम है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछे गए एक स्पष्ट प्रश्न पर, उन्होंने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित एफआईआर पुलिस स्टेशन चकरभाटा की पुलिस द्वारा दर्ज की गई थी। जिसे वर्तमान कार्यवाही में पक्षकार बनाने के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा सका है। न्यायालय ने इसके मद्देनजर, याचिकाकर्ता के वकील को निर्देश दिया है कि वह प्रतिवादी संख्या 2 का नाम पक्षकारों की सूची से हटाने के लिए एक उपयुक्त आवेदन दायर करें।

वहीं राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि कथित तौर पर मृतक द्वारा लिखा गया सुसाइड नोट, जिसे अनुलग्नक A/1 के रूप में संलग्न किया गया है, एक हस्तलेखन विशेषज्ञ द्वारा जांच के लिए भेजा गया है और रिपोर्ट का अभी भी इंतजार है। जिसपर राज्य सरकार के वकील को निर्देश दिया गया है कि उक्त विशेषज्ञ रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त होने पर उसे प्रस्तुत करें और मामले को तीन सप्ताह बाद फिर से सूचीबद्ध किया जाए। पूर्व में दी गई अंतरिम राहत अगली सुनवाई की तारीख तक जारी रहेगी।

दरअसल चकरभाठा पुलिस को नंद किशोर शर्मा द्वारा 24 जनवरी 2023 को चकरभाटा कैंप स्थित अपने किराए के मकान में आत्महत्या कर लेने की सूचना मिली थी। जाँच के दौरान, मृतक द्वारा छोड़ा गया एक आत्महत्या पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि मृतक ने आत्महत्या की क्योंकि वर्तमान याचिकाकर्ता चंद्रप्रताप तिवारी और सह-अभियुक्त प्रिय नाथसोनी उसे आत्महत्या के लिए उकसा रहे थे और आगे कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने उससे पैसे उधार लिए थे और वह उसे वापस करने से इनकार कर रहा है। पैसे वापस मांगने पर, याचिकाकर्ता ने मृतक को गाली दी और जान से मारने की धमकी दी।

याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि घटना 24 जनवरी 2023 को हुई थी और एफआईआर डेढ़ साल बाद यानी 19 मई 2024 को दर्ज की गई थी।

याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराध देरी से और साजिश के तहत झूठे और मनगढ़ंत तथ्यों के साथ दर्ज किया गया है। इसलिए, पुलिस ने दुर्भावना से एफआईआर दर्ज की है और एफआईआर रद्द किए जाने योग्य है। उन्होंने आगे कहा कि जांच अधिकारी को यह जानने के लिए हस्तलेखन विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए कि आत्महत्या पत्र मृतक द्वारा लिखा गया था या नहीं। लेकिन, जांच अधिकारी हस्तलेखन विशेषज्ञ से परामर्श करने में विफल रहे। इसलिए, कथित अपराध आत्महत्या पत्र के आधार पर नहीं बनाया जा सकता। इस मामले में सुनवाई जारी है और न्यायालय ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अधिवक्ता को निर्देश दिए हैं।

(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi

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