Uttar Pradesh

पंचनद के जंगलों में गूंज रही तेंदुओं की गुर्राहट

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बिलायती बबूल से उजड़े जंगलों में लौट रही है ‘जंगल की दहाड़’।

औरैया, 29 जुलाई (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के इटावा, औरैया और जालौन जनपदों की सीमाओं पर स्थित पंचनद का जंगली इलाका — जहाँ यमुना, चंबल और उनकी सहायक नदियों का संगम होता है — अब एक नई कहानी बुन रहा है। दशकों की चुप्पी के बाद, इन बीहड़ों में फिर से तेंदुओं की गुर्राहट गूंजने लगी है, जो एक ओर ग्रामीणों में भय का कारण है, तो दूसरी ओर पर्यावरणविदों के लिए यह वन्य जीवन के पुनरुत्थान का शुभ संकेत है।

बिलायती बबूल: एक विनाशकारी प्रयोग

सन् 1980 में चंबल आय कट योजना के तहत सरकार ने बीहड़ों को हरियाली से आच्छादित करने के उद्देश्य से बिलायती बबूल (Prosopis juliflora) के बीजों का छिड़काव कराया। लेकिन यह फैसला वन्य जीवन के लिए घातक साबित हुआ। इस विदेशी पौधे के नुकीले काँटों ने न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित किया, बल्कि वन्य जीवों के पारंपरिक गद्दीदार रास्तों को अवरुद्ध कर दिया।

गायब होती प्रजातियाँ

‘सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, 1980 से 2015 तक 35 वर्षों में पंचनद क्षेत्र से कम से कम 9 प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं। इनमें शामिल हैं-तेंदुआ,बारहसिंगा,काला हिरण,चीतल,लकड़बग्घा,काला नेवला,लाल हिरण,लोमड़ी,केरकिल समेत कई अन्य प्रजातियाँ संकटग्रस्त हो चुकी हैं, और जंगल का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता गया।

वापसी की दस्तक: फिर सुनाई दी तेंदुओं की गुर्राहट।

बीते एक माह में पंचनद के बीहड़ी गाँवों में ग्रामीणों ने तेंदुओं को खुलेआम विचरण करते देखा है, जो करीब दो दशक बाद एक दुर्लभ दृश्य है। इससे ग्रामीण दहशत में हैं और जंगल में आने-जाने में सतर्कता बरत रहे हैं।

पर्यावरण शोधकर्ता हरेन्द्र राठौर, जो पिछले कई वर्षों से पंचनद क्षेत्र पर अध्ययन कर रहे हैं, मानते हैं कि — बबूल की अंधाधुंध कटाई और मानवीय दखल में कमी से जंगल की परतें खुल रही हैं, जिससे वन्य जीवों की वापसी संभव हो रही है। तेंदुओं की बढ़ती हलचल इसी सकारात्मक परिवर्तन का प्रमाण है।

डरें नहीं, समझें – विशेषज्ञ की सलाह

डॉ. राजीव चौहान, जो देहरादून वन्य जीव संस्थान के जैव विविधता विशेषज्ञ हैं, का कहना है। तेंदुआ स्वभाव से मानव से बचने वाला प्राणी है। आमतौर पर यह रात के समय शिकार के लिए निकलता है, और केवल सामने से खतरे की स्थिति में ही आक्रामक होता है। सामान्य परिस्थितियों में यह इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाता। इसका प्रिय आहार कुत्ते का मांस होता है, जो गांवों के आस-पास सहज उपलब्ध रहता है।

गांवों में डर का माहौल, प्रशासन अलर्ट पर

इटावा जनपद के सहसों थाना क्षेत्र के गांव टीटावली में एक सप्ताह में तीन बकरियों को अपना निवाला बनाया गया है, जिससे तेंदुओं की मौजूदगी की पुष्टि के बाद वन विभाग और पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया है। ग्रामीणों से अपील की गई है कि वे जंगल में अकेले न जाएं, और तेंदुओं का सामना करने से बचें।

क्या कहता है भविष्य

यदि मौजूदा हालात को संवेदनशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नियंत्रित किया गया, तो पंचनद क्षेत्र उत्तर भारत की एक नई जैवविविधता हॉटस्पॉट बन सकता है। जरूरत है-बिलायती बबूल हटाने के प्रयासों को तेज़ करने की,जैव विविधता बहाली की योजनाओं को क्रियान्वित करने की,वन्य जीवों और मानव के सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने की

बीहड़ की चुप्पी अब टूट रही है।

जहाँ एक ओर पचनद की धार्मिक और पौराणिक महत्ता इसकी पहचान रही है, वहीं अब इसके जंगलों में वन्य जीवन की वापसी इस भूमि को और भी गौरवशाली बना रही है।

तेंदुए की गुर्राहट सिर्फ डर नहीं, प्रकृति के पुनर्जीवन की पुकार है, जिसे समझने की ज़रूरत है, न कि बस उससे डरने की।

हिंदुस्थान समाचार कुमार

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(Udaipur Kiran) कुमार

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