Delhi

कला, ध्यान और दर्शन का संगम बनी संस्कार भारती की मासिक संगोष्ठी

संस्कार भारती ( फाइल फोटो)

नई दिल्ली, 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । संस्कार भारती के केंद्रीय कार्यालय ‘कला संकुल’ नई दिल्ली में प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को आयोजित होने वाली मासिक कला संगोष्ठी इस बार “अंतर्यात्रा : कल्पना, कला और ध्यान” विषय पर केंद्रित रही। जिसमें कला, दर्शन और आत्मचिंतन के मध्य एक गहन संवाद देखने को मिला।

इस संगोष्ठी की मुख्य वक्ता रहीं वैशाली गाहल्याण जो मिरांडा हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की सहायक प्राध्यापक हैं एवं भारतीय चिंतन पर गहन शोध कर रही हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय कला केवल दृश्य रचनात्मकता नहीं बल्कि आत्मा और ब्रह्म की खोज है। यह एक अंतर्यात्रा है जो कलाकार को साधक बनाती है। उन्होंने कहा कि कल्पना, ध्यान और साधना के माध्यम से वह स्वयं को जानता है और फिर अपने अनुभवों को समाज के समक्ष अभिव्यक्त करता है।

कार्यक्रम की शुरुआत सावन से मेल खाती एक कजरी प्रस्तुति से हुई। जिसे स्नेहा मुखर्जी एवं उनके समूह ने प्रस्तुत किया।

साथ ही नीलाक्षी खंडकर सक्सेना द्वारा प्रस्तुत कथक नृत्य ने नारी चेतना, लय और भाव की सजीव अभिव्यक्ति के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपरा की गरिमा को मंच पर जीवंत किया।

संगोष्ठी में दिल्ली के कला, संस्कृति एवं शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अनेक प्रतिष्ठित विद्वान, कलाकार, शोधकर्ता एवं संस्कार भारती के पदाधिकारी उपस्थित रहें।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के कला केंद्र कहे जाने वाले संस्कार भारती – कला संकुल ने राजधानी के कला प्रेमियों के लिए एक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इसके भूतल पर मंचीय कला प्रस्तुतियों का आयोजन होता है जबकि प्रथम तल पर स्थित आर्ट गैलरी भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित विविध कला विधाओं को एक उत्कृष्ट मंच प्रदान करती है। यहां आयोजित मासिक संगोष्ठियों में वैचारिक विमर्श के साथ-साथ नृत्य, संगीत, काव्य एवं अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां भी नियमित रूप से होती हैं।

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(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी

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