Uttar Pradesh

सावन के तीसरे सोमवार की पूर्व संध्या पर काशी नगरी शिवमय, हर-हर महादेव से गूंजा दरबार

श्री काशी विश्वनाथ के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब

—बारिश में भीगते कांवड़ियों ने की बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी, अर्धनारीश्वर स्वरूप की झांकी का दर्शन

वाराणसी, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । सावन मास के तीसरे सोमवार की पूर्व संध्या पर रविवार को उत्तर प्रदेश की काशी नगरी शिवमय हो गई है। चारों ओर हर-हर महादेव और बोल बम के जयघोष के बीच केशरियामय शिवभक्तों का सैलाब बाबा श्री काशी विश्वनाथ के दरबार में दर्शन पूजन के लिए उमड़ रहा है। बारिश की फुहारों में भीगते हुए आस्थावान कांवड़िए गंगा स्नान के बाद बाबा को गंगाजल अर्पित करने के लिए कतारबद्ध हो रहे है। दशाश्वमेध घाट से गंगा स्नान कर कांवड़िए बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए दरबार के लिए निकल पड़े। केसीएम और बांसफाटक तक श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहीं। दोपहर में शुरू हुई बारिश के बावजूद भक्तों की आस्था में कोई कमी नहीं आई। शाम ढलने के साथ ही दर्शनार्थियों की भीड़ और लंबी होती गई। उधर,सावन माह के तीसरे सोमवार को दर्शन पूजन के लिए मंदिर परिसर के बाहर कतार में लगने लगे है। पूरी रात श्रद्धालु खुले आसमान के नीचे बारिश में भींग भजन-कीर्तन करते हुए बाबा के दर्शन की प्रतीक्षा में रहेंगे। सुबह मंगला आरती के साथ मंदिर का पट खुलेगा और बाबा के दर्शन शुरू होंगे।

—अर्धनारीश्वर स्वरूप में सजेंगे बाबा विश्वनाथ

तीसरे सोमवार को बाबा का विशेष अर्धनारीश्वर स्वरूप दर्शन के लिए सजेगा। यह झांकी श्रृंगार भोग आरती से पूर्व सुगंधित फूलों से सजाई जाएगी। अर्धनारीश्वर स्वरूप शिव और शक्ति के अद्वैत भाव को दर्शाता है, जिसमें भगवान शंकर ने स्वयं को दो भागों में विभक्त किया था। यह दर्शन भक्तों के लिए विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

—प्रशासन ने किए विशेष इंतजाम

जिला प्रशासन और मंदिर प्रबंधन द्वारा दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए सुरक्षा और दर्शन व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए गए हैं। भीड़ नियंत्रण, पेयजल, खोया-पाया केंद्र, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, चिकित्सकीय सुविधा और एनडीआरएफ की टीमें भी मुस्तैद हैं। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल, पेन, घड़ी, पेनड्राइव आदि लेकर न आएं, ताकि दर्शन में व्यवधान न हो।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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