


जौनपुर ,25 जुलाई (Udaipur Kiran) । मुम्बई में 2006 के सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट ने सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया है। इसलिए उन्हें बरी किया जाता है। हालांकि निचली अदालत ने 12 आरोपियों में से 5 आरोपियों को फांसी और 7 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बरी हुए आरोपियों में से एक जौनपुर ज़िलें के खेतासराय के मनेच्छा गांव के रहने वाले एहतेशाम सिद्धिकी है। जिन्हें कोर्ट ने 19 साल बाद बरी कर दिया है। एहतेशाम सिद्धिकी ने शुक्रवार को हिंदुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए अपनी आप बीती बताई,उन्होंने कहा कि जब सीरियल ट्रेन ब्लास्ट में मुझे आरोपी बनाया गया और जेल में गए तो उस समय हमारी उम्र 24 साल की थी।एहतिशाम ने बताया कि 1996 में जौनपुर के मोहम्मद हसन इंटर कॉलेज से हाई स्कूल पास करने के बाद वह हायर एजुकेशन के लिए मुम्बई चला गया। वह 2001 में मुम्बई के कुर्ला में सिमी संगठन के द्वारा संचालित लाइब्रेरी में मैं पढ़ाई करता था। जिस समय सिमी पर प्रतिबंध लगा उस समय मे मैं लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रह था। उसी समय पहली बार मुझे गिरफ्तार कर लिया और मुझे पता नही था कि ये लाइब्रेरी सिमी संगठन के द्वारा संचालित हो रही है। गिरफ्तारी दूसरे दिन मुझे कोर्ट ने बेल दे दिया। फिर कोर्ट में केस चलता रहा। कोर्ट ने 2014 में मुझे बरी कर दिया। एहतिशाम ने बताया कि पुलिस ने इसी गिरफ्तारी का आधार बना कर 2006 में ब्लास्ट कांड में मुझे भी आरोपी बनाया था।और इसी केस में मुझे निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।लेकिन मैं निर्दोष था और मुझे ईश्वर और अपनी न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था।फिलहाल जेल से रिहा होने के बाद एहतिशाम बुधवार को अपने घर जौनपुर के खेतासराय थाना क्षेत्र के मनेच्छा पहुंचे।19 साल बाद पूरे परिवार से मिलकर खुशी का ठिकाना न रहा।एहतिशाम ने बताया कि पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर मुम्बई जेल में भेजा।जहां शुरुआत में मुझे एक आतंकवादी और देश द्रोही की नजर से देखते थे और गालियां भी देते थे।लेकिन धीरे धीरे सबको मैंने बताया कि मैं निर्दोष हूँ और मेरा आचरण देखकर सब मुझसे अच्छा ब्यवहार करने लगे।एहतिशाम ने बताया उसने जेल में रहकर बची हुई बीटेक की एक साल की पढ़ाई पूरी की,इसके बाद मैने जेल में ही रहकर शिक्षा के क्षेत्र में 22 डिग्रियां हाशिल की।तथा जेल में ही रहकर मैंने रामायण,गीता और कुरान भी पूरा पढ़ा।साथ ही मैं अभी एलएलबी कर रहा हूँ अभी एक वर्ष बचा है।एहतिशाम ने बताया जेल में सभी स्टाफ का ब्यवहार बहुत अच्छा था।सबने मेरी मदद की।मैंने उस दौरान अपने केस की खुद स्टडी की।अपने केस में राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट का प्रयोग कर सभी सबूत जुटाने का काम किया।देश के बड़े वकील हम सब का केस लड़ रहे थे और हम सभी उनका आभार ब्यक्त किया है।एहतिशाम ने बताया कि मेरे माता पिता और परिवार ने बहुत संघर्ष किया लेकिन सबको न्यायपालिका पर भरोसा था कि एक दिन जरूर न्याय मिलेगा।एहतिशाम ने बताया कि जेल में रहने के दौरान उन्होंने कुरान गीता रामायण महाभारत जैसी किताबों का भी अध्ययन किया यहां तक की अपने केस को शुरुआत करने के लिए लगभग 70 दोनों का उपवास भी रखा था और भगवान से प्रार्थना किया कि उनका केश शुरू हो सके साथ ही अपने रिहाई के लिए भी 70 दिन का उपवास रखा था जिससे उन्हें सकुशल रिहा कर दिया जाय जिसका उनको फल मिला उपवास रखने का तरीका उन्हें। महाभारत पढ़ने पर जानकारी मिली थी।एहतिशाम ने बताया कि जब मुझे आरोपी बनाया था तब मेरी शादी के मात्र छह महीने ही हुए थे।मैं उसको सेल्यूट करता हूं,जो उसने मेरा हमेशा साथ दिया और आज तक इंतजार करती रही।उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था।एक दिन निर्दोष साबित होकर घर वापस जरूर आऊंगा।एहतिशाम ने बताया कि 19 साल बाद जौनपुर पहुंचते ही सब कुछ बदला हुआ नजर आया।अपने साथियों से भी मिला।रिश्तेदार लगातार मिलने के लिए आ रहे है।यहां बहुत विकास हुआ है।वही एहतिशाम के पिता कुतबुद्दीन ने बताया कि बेटा घर वापस आया है।उन्हें न्यायपालिका और ईश्वर पर पूरा भरोसा था।पूरा परिवार बहुत खुश है।
(Udaipur Kiran) / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
