हल्द्वानी, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति की पुनः कुलपति के पद पर चौथे कार्यकाल के लिए नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर सामाजिक संगठनों ने विरोध किया है।
कहा कि अपने तीन कार्यकाल में नियुक्तियों से लेकर तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे रहे वर्तमान कुलपति को चौथा कार्यकाल देने पर राज्य की भाजपा सरकार क्यों आमादा है? क्या वजह है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति बनने की अधिकतम आयु सीमा पैंसठ साल से अधिक सड़सठ साल पूरा कर चुके व्यक्ति को नियम विरुद्ध पुनः कुलपति बनाया जाना राज्य सरकार को जरूरी लग रहा है? इसका जवाब राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत को जनता के सम्मुख देना चाहिए।
गौरतलब है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ऐक्ट 31 अक्टूबर 2005 और उस समय यूजीसी के नियम के अनुसार कुलपति की अधिकतम अहर्ता आयु पूरे देश के विश्वविद्यालयों में 65 वर्ष थी। ऐक्ट में संशोधन नहीं होने से अधिकतम आयु सीमा में छूट न दिए जाने पर स्पष्ट है कि कुलपति के लिए उस समय यूजीसी की अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष ही अभी भी लागू है। यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अनुसार 65 वर्ष के बाद तो कोई भी कुलपति पद हेतु आवेदन भरने के लिये अर्ह तक नहीं होता है। साफ है कि, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति उच्च शिक्षा विभाग और कुलाधिपति कार्यालय को गुमराह कर मानकों और नियमों को तार तार करते हुए इस अवैध प्रक्रिया को अंजाम दे रहे है। जब यूजीसी के नियम के अनुसार बिना ऐक्ट में संशोधन के कुलपति की नियुक्ति में अधिकतम आयु 65 से 70 किया जाना अवैध है।
भाकपा (माले) ने इसका विरोध करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है।
(Udaipur Kiran) / अनुपम गुप्ता
