शिमला, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश के ऊपरी शिमला इलाके में वन भूमि पर अतिक्रमण कर लगाए गए सेब और अन्य फलों के बगीचों को हटाने की कार्रवाई पर सियासत तेज हो गई है। सेब उत्पादक संघ के सवालों पर प्रदेश के राजस्व और बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने स्पष्ट कहा है कि यह कार्रवाई किसी राजनीतिक दबाव या सरकारी आदेश से नहीं, बल्कि हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में हो रही है।
मंत्री ने सोमवार को कहा कि जो लोग इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें पहले कानूनी पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए। बताया कि यह फैसला जनवरी में ही आ चुका था। सरकार ने साेमवार काे हाई कोर्ट में एक आवेदन देकर पेड़ों की कटाई पर कुछ समय तक के लिए राहत की मांग की थी, लेकिन अदालत ने यह अर्जी खारिज कर दी।
मंत्री ने कहा कि वन अधिकार कानून (एफआरए) और अतिक्रमण से जुड़े कानून अलग-अलग हैं। एफआरए कानून 2008 से लागू है, लेकिन बहुत से लोग समय रहते अपना दावा पेश नहीं कर पाए। ऐसे में सरकार की ओर से कोई विरोधाभास नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि चैथला गांव के 32 लोगों का मामला पहले डीएफओ, फिर एसडीएम, डिविजनल कमिश्नर से होता हुआ हाई कोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट के आदेश के बाद ही पेड़ों की कटाई की कार्रवाई शुरू हुई है।
मंत्री ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश स्पष्ट है और सरकार को इसे लागू करना ही होगा। जो लोग सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, वे पहले कोर्ट का आदेश और एफआरए के प्रावधानों को पढ़ें। सरकार ने राहत के लिए प्रयास किए थे, लेकिन अदालत ने उसे स्वीकार नहीं किया।
वहीं, नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर द्वारा राहत और पुनर्वास कार्यों में देरी के आरोपों पर भी जगत सिंह नेगी ने तीखा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह समय राजनीति करने का नहीं है। नेता प्रतिपक्ष एक तरफ कहते हैं कि सरकार काम कर रही है और दूसरी तरफ कहते हैं कि कुछ नहीं हो रहा। यह दोगली बात है।
मंत्री ने बताया कि सराज क्षेत्र में ही 50 से अधिक मशीनें राहत और पुनर्वास कार्यों में जुटी हैं। लगातार बारिश के कारण कुछ आंतरिक सड़कों को खोलने में जरूर समय लग रहा है, लेकिन सरकार और प्रशासन पूरी तरह सक्रिय हैं।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
