
–नई अवधारणाओं और प्रवृत्तियों पर बहुविषयक रिफ्रेशर कोर्स का समापन
प्रयागराज, 09 जुलाई (Udaipur Kiran) । मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र ईश्वर शरण पी.जी कॉलेज द्वारा बुधवार को यूजीसी एवं शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत नई अवधारणाओं और प्रवृत्तियों पर आधारित बारह दिवसीय बहुविषयक रिफ्रेशर कोर्स का समापन हुआ।
समापन दिवस के प्रथम सत्र में इग्नू, नई दिल्ली के बाल विकास विभाग के कोऑर्डिनेटर डॉ. आलोक कुमार उपाध्याय ने विद्यार्थियों के सीखने की विशिष्ट अक्षमता पर कहा कि विशेष लर्निंग अक्षमता से युक्त विद्यार्थी वे होते हैं जिन्हें सीखने में विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन विद्यार्थियों को अपनी शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष समर्थन और अनुकूलन की आवश्यकता होती है, जिसे हम शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को प्रदान करना होता है। विशेष शिक्षा और व्यक्तिगत सहायता से वे अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सकते हैं।
दूसरे सत्र में सागर विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग के डॉ. धर्मेंद्र कुमार सर्राफ ने क्रियात्मक शोध पर कहा कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समस्याओं का समाधान करने और सुधार लाने के लिए वास्तविक परिस्थितियों में अनुसंधान किया जाता है। इसका लक्ष्य व्यावहारिक समस्याओं का समाधान निकालना और तत्काल प्रभाव डालना होता है। इसमें शोधकर्ता और अभ्यासकर्ता मिलकर काम करते हैं और इसमें परिणामों को सीधे लागू किया जाता है। यह शोध शैक्षणिक और व्यावसायिक संदर्भों में सुधार लाने के लिए उपयोगी होता है।
तीसरे सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय के बायो केमेस्ट्री विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आर.पी ओझा ने वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रबंधन और रोकथाम के लिए कृत्रिम बौद्धिकता के इस्तेमाल पर कहा कि वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में, कृत्रिम बौद्धिकता पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रबंधन और रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। एआई तकनीक का उपयोग कर जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और वनस्पति विनाश जैसी समस्याओं का विश्लेषण और समाधान किया जा सकता है। एआई से डेटा विश्लेषण, भविष्यवाणी और निर्णय लेने में सुधार हो सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, एआई आधारित समाधान ऊर्जा संचयन, अपशिष्ट प्रबंधन और संरक्षण प्रयासों में भी सहायक हो सकते हैं।
अंतिम सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर अनुराधा अग्रवाल ने नारीवादी शोध प्रविधि पर कहा कि सामाजिक विज्ञान की शोध प्रविधियों में नारीवादी परिप्रेक्ष्य जोड़ना समाज विज्ञान को अधिक समतामूलक और मानवीय बनाना है। उन्होंने कहा कि समाज विज्ञान के क्षेत्र में नारीवादी शोध प्रविधि की शुरुआत बीसवीं सदी में सत्तर के दशक में शुरू हुई, लेकिन इस प्रविधि ने अपनी ज्ञान प्रणाली को पाश्चात्य चिंतन परम्परा में देखने की कोशिश की। पाश्चात्य चिंतन परम्परा में पूर्वी देशों के ज्ञान और चिंतन की प्रणाली को हेय दृष्टिकोण से देखा गया और पश्चिमी देशों का ज्ञान शासन और शोषण का जरिया बना रहा।
प्रो. अनुराधा अग्रवाल ने नारीवादी शोध प्रविधिकी विविध परतों का भी उल्लेख किया, जिसमें उनकी जातीय विविधता, क्षेत्रीय विविधता और नृजातीय विविधता को उल्लिखित किया। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को भी नए सिरे से देखने की आवश्कता पर जोर दिया। उन्होंने महिलाओं की मौखिक कहानियों को भी शोध और इतिहास लेखन की विषयवस्तु बननी चाहिए, इस पर जोर दिया।
डॉ मनोज कुमार दूबे ने बताया कि इस अवसर पर बहुविषयक रिफ्रेशर कोर्स के संयोजक डॉ शैलेश कुमार यादव ने वक्ताओं का स्वागत और कार्यक्रम का संचालन किया तथा कार्यक्रम के सहसंयोजक डॉ अविनाश कुमार पांडे ने वक्ताओं और प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस बहुविषयक रिफ्रेशर कोर्स में देश के 24 राज्यों से विभिन्न विषयों के कुल 222 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।
(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
