HimachalPradesh

छह दशक में 0.9 डिग्री बढ़ गया हिमाचल का तापमान, प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ी रफ्तार

मंडी में भूस्खलन

शिमला, 7 जुलाई (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाएं जैसे बादल फटना, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ अब सामान्य घटनाएं बनती जा रही हैं। राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार अत्री ने जलवायु परिवर्तन को इन आपदाओं की मुख्य वजह बताते हुए गंभीर चिंता जताई है। पिछले 60 वर्षों में प्रदेश का औसत तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

डॉ. अत्री ने कहा कि बादल फटना एक स्थानीयकृत तीव्र वर्षा की घटना होती है, जिसमें सीमित क्षेत्र (1–2 वर्ग किलोमीटर) में एक घंटे के भीतर 100 मिमी से अधिक बारिश होती है। हिमाचल की पहाड़ी ढलानों और संकीर्ण घाटियों में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। परिणामस्वरूप नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे बस्तियां और सड़कों को नुकसान पहुंचता है।

डॉ. अत्री ने चेताया कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, सड़क निर्माण, सुरंगें और निर्माण कार्य बिना पर्याप्त पर्यावरणीय परीक्षणों के किए जा रहे हैं। इससे क्षेत्र की भूगर्भीय संवेदनशीलता बढ़ी है और जल प्रवाह के प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हर परियोजना से पूर्व पर्यावरणीय और भूगर्भीय परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए। साथ ही ड्रेनेज पैटर्न का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए और उसे ढलानों के अनुसार व्यवस्थित ढंग से विकसित किया जाए। कहा कि वन क्षेत्र में स्थानीय पौधों की जगह बाहरी प्रजातियों के वृक्षारोपण से भी पारिस्थितिकी को नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि स्थानीय जलवायु के अनुकूल पौधों का रोपण प्राथमिकता होनी चाहिए।

डॉ. अत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से मुकाबला केवल सरकार की नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी है। स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन और जलवायु के प्रति जागरूक कर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि वे खतरे के समय तत्परता से प्रतिक्रिया कर सकें। उन्हाेंने स्पष्ट कहा कि हिमालयी क्षेत्र में हो रहा जलवायु परिवर्तन केवल हिमाचल तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव पूरे उत्तर भारत पर पड़ेगा। अगर समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे।

हिमाचल प्रदेश में खासतौर पर मानसून सीजन में हर साल भारी तबाही होती है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीआरएफ) के आंकड़ों के अनुसार इस साल राज्य में मानसून का आगमन 20 जून को हुआ था। तब से लेकर अब तक वर्षा जनित हादसों में 80 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 38 घायल और 31 अभी भी लापता हैं। इस दौरान 163 घर पूरी तरह से ध्वस्त और 191 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। 364 पशुशालाएं और 27 दुकानें भी तबाह हो चुकी हैं। हिमाचल को कुल 692 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। इसमें जलशक्ति विभाग को 391 करोड़ और लोक निर्माण विभाग को 292 करोड़ का नुकसान पहुंचा है।

मंडी जिले में इस मानसून में सबसे अधिक तबाही हुई है। यहां अकेले 30 जून की रात को 12 स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं हुईं, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। जिले में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 31 लोग लापता हैं। इसके अलावा कांगड़ा में बाढ़ से सात और कुल्लू में एक व्यक्ति की मौत की पुष्टि हुई है।

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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा

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