


रामगढ़, 7 जुलाई (Udaipur Kiran) । जिले में आपदा मित्र तैयार किए जा रहे हैं। मेडिकल इमरजेंसी के दौरान जब तक चिकित्सकों की टीम नहीं पहुंचती, तब तक आम नागरिक एक दूसरे की सहायता कर सके, यह बेहद जरूरी है। सहायता देने के लिए तकनीकी ज्ञान होना भी बेहद आवश्यक है। यह बातें सोमवार को रामगढ़ टाउन हॉल में डीसी फ़ैज़ अक अहमद मुमताज ने कही।उपायुक्त फर्स्ट एड के मास्टर ट्रेनर की टीम को प्रशिक्षण दे रहे थे। उन्होंने कहा कि कार्डियक अरेस्ट के दौरान अगर मरीज को गोल्डन ऑवर में सीपीआर दे दिया जाए तो उसके बचने की संभावना कई गुना अधिक बढ़ जाती है।
बताया वयस्क, बच्चे और नवजात शिशु को सीपीआर देने का तरीका
डीसी ने प्रशिक्षण ले रहे लोगों को वयस्क, बच्चे और नवजात शिशु को सीपीआर देने का तरीका बताया। उन्होंने पुतलों को सामने रखकर पहले यह स्पष्ट किया कि किस मरीज को सीपीआर देना है और किसे नहीं। सीपीआर देने के लिए हर एज ग्रुप का अलग तरीका है। एक वयस्क को 30 कंप्रेस के बाद मुंह से सांस देना है। वयस्क को देने के लिए पूरे शरीर का जोर लगाना बेहद जरूरी है, तभी बंद हुई दिल की धड़कन को दोबारा शुरू किया जा सकता है। एक बच्चे को एक हाथ से उसकी छाती को तेजी से दबाना है, ताकि उसका ब्लड सरकुलेशन सही से हो सके। लेकिन एक नवजात शिशु को सिर्फ दो उंगलियों से ही सीपीआर दिया जाता है। इसकी गिनती भी 15 कंप्रेस तक रहती है। छाती के किस हिस्से को दबाना है इसका तकनीकी ज्ञान भी डीसी ने दी। प्रशिक्षण लेने आए मास्टर ट्रेनर को प्रोजेक्टर के माध्यम से तस्वीरें भी दिखाई गई, ताकि वह सीपीआर देने की बारिकियों को आसानी से समझ सकें।
सीपीआर देने में छूट जाएंगे पसीने
डीसी ने कहा कि सीपीआर की प्रक्रिया देखने में तो बहुत आसान लगती है। लेकिन इसे देने में इंसान के पसीने छूट जाते हैं। एक मिनट में 100 बार छाती को दबाना बेहद कठिन प्रक्रिया है। लेकिन एक बार जानकारी हो जाए तो सीपीआर कोई भी जरूरतमंद मरीज को दे सकता है। इसलिए जब भी किसी मरीज को सीपीआर दिया जाता है, उस वक्त वहां मौजूद व्यक्ति लगातार मदद के लिए लोगों को बुलाता भी है। ताकि जिस व्यक्ति की जान बचाई जानी है, उसे एक टीम वर्क के तहत सीपीआर मिले और रिवाइव करने के बाद उसे सही चिकित्सा भी उपलब्ध हो सके।
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(Udaipur Kiran) / अमितेश प्रकाश
