Jharkhand

मौसीबाड़ी से जगन्नाथपुर मंदिर लौटने से पहले, मां लक्ष्मी की घूरती नजरों ने रोक लिया रथ

मेले में रथ की फाइल फोटो

रांची, 6 जुलाई (Udaipur Kiran) । जगन्नाथपुर के मौसीबाड़ी मंदिर से वापसी की राह पर निकले भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथ को एक बार फिर उस अनदेखी भावना ने थाम लिया।

मान्यता के अनुसार जगन्नाथपुर के घूरती रथ के दौरान रविवार को मौसीबाड़ी मंदिर से जैसे ही रथ जगन्नाथपुर मुख्य मंदिर की ओर बढ़ने लगा। वैसे ही मां लक्ष्मी की प्रतीकात्मक झांकी ने सामने आकर उन्हें निहारना शुरू किया। एक ऐसा दृश्य, जो हर वर्ष श्रद्धा, प्रेम और प्रतीक्षा की जीवंत झांकी बन जाता है। माता लक्ष्मी की घूरती नजरों ने रथ को रोक लिया। यही घूरती रथ के रूप में जाना जाता है।

जगन्नाथपुर मंदिर परिसर में यह क्षण अत्यंत विशेष माना जाता है। हर कोई स्वामी जगन्नाथ, बहन सुभद्रा, भाई बलभद्र और माता लक्ष्मी की होने का आभास करते हैं।

परंपरागत मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ जब बिना मां लक्ष्मी को साथ लिए मौसीबाड़ी चले जाते हैं, तो उनकी नाराज़गी रथ की वापसी पर सामने आती है। घूरती रथ का यही भाव, जो हर वर्ष एक आध्यात्मिक संवाद बन जाता है। जहां भगवान मौन होते हैं और मां लक्ष्मी उनकी ओर प्रेम और उदास भाव से देखती हैं। मंदिर प्रांगण में इस दृश्य को देखने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।

वैदिक मंत्रोच्चार, ढोल-नगाड़े और भजन-कीर्तन जयकारे के साथ जब रथ धीरे-धीरे मंदिर द्वार की ओर बढ़ा, तब प्रतीकात्मक रूप में मां लक्ष्मी की झांकी को रथ के सामने लाया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ स्वामी, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की जयघोष करने लगे। प्रेम का यह प्रतीक उस प्रेम भाव और संबंध को दर्शाता है, जो न सिर्फ ईश्वर और देवी देवताओं बल्कि हर गृहस्थ जीवन की भावना को दर्शाता है।

क्या है घूरती रथ

घूरती रथ शब्द का अर्थ होता है वापसी रथ यात्रा। रथयात्रा के आठवें दिन (आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी) को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपनी मौसीबाड़ी से पुनः अपने मूल स्थान जगन्नाथपुर मंदिर में वापस लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को ही स्थानीय भाषा और परंपरा में घूरती रथ कहा जाता है। वापसी यात्रा (घूरती रथ) के दिन हजारों श्रद्धालु पुनः मंदिर पहुंचते हैं और भगवान की वापसी यात्रा में सहभागी होते हैं।

मान्यता है कि घूरती रथ के दर्शन मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान को वापस उनके स्थान तक पहुंचाना भक्तों के लिए अत्यंत सौभाग्य की बात होती है।

घूरती रथ न सिर्फ एक धार्मिक परंपरा बल्कि भगवान और देवी के बीच के भावनात्मक संबंध और गृहस्थ धर्म के मूल्यों को दर्शाने वाला अद्भुत प्रसंग है।

इससे पूर्व जगन्नाथपुर मंदिर परिसर में विशेष पूजा-अर्चना, दीपदान, भजन-कीर्तन और आरती का आयोजन किया गया। मौसीबाड़ी में पुजारी वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा और लक्ष्मी की पूजा की गई। देवी लक्ष्मी की प्रतीकात्मक झांकी को सजी-धजी पालकी में रथ के समक्ष लाया जाता है। इसके बाद श्रद्धालुओं ने रथ की भव्य झांकी की धीरे धीरे खींचते हुए जगन्नाथपुर मुख्य मंदिर लाया।

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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar

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