देहरादून, 4 जुलाई (Udaipur Kiran) । केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू की उपस्थिति में शुक्रवार को देहरादून में मिनिस्टर कॉन्फ्रेंस ऑन सिविल एविएशन (नॉर्दर्न रीजन) का आयोजन हुआ। मसूरी रोड स्थित एक निजी होटल में आयोजित इस सत्र में नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में राज्यों के लिए अवसरों पर चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने हवाई कनेक्टिविटी, ड्रोन नीति और प्रशिक्षण संस्थानों की आवश्यकता पर प्रस्तुतियां दीं।
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव (एसीए) असांगबा चुबा ने बताया कि उड़ान योजना के तहत विभिन्न राज्यों के साथ हवाई कनेक्टिविटी को मजबूत किया जा रहा है, साथ ही नए मार्गों में हवाई संचालन के लिए नई संभावनाओं पर भी कार्य हो रहा है।
उन्होंने बताया देश में अब तक उड़ान योजना के तहत 625 आरसीएस रूट कनेक्ट किए जा चुके हैं। इस योजना का लाभ अब तक 1.53 करोड़ से अधिक यात्री ले चुके हैं। उन्होंने कहा कि अगले 10 साल में 4 करोड़ यात्रियों को हवाई सेवा का लाभ देने के लिए मॉडिफाइड उड़ान स्कीम शुरू की जाएगी। इस स्कीम के जरिए 120 गंतव्यों को आपस में जोड़ा जाएगा।
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के संयुक्त सचिव (एमएसएस) मधु सूदन शंकर ने बताया कि हवाई कनेक्टिविटी के संचालन के लिए हमारे पास आवश्यकता के अनुसार मानव संसाधन भी होने चाहिए। पायलट, तकनीशियन, ग्राउंड स्टाफ से लेकर एयर ट्रैफिक कंट्रोल तक हर स्तर पर मानव संसाधन की आवश्यकता होती है। इसके लिए राज्यों में प्रशिक्षण संस्थान भी होने चाहिए। उन्होंने बताया भारत 2030 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बनेगा।
देश में मौजूदा हवाई अड्डों की संख्या 162 से बढ़कर 2047 तक 350-400 तक पहुंचने की संभावना है। उन्होंने बताया एयरबस के अनुसार, भारत को वर्ष 2040 तक विमानन रखरखाव के लिए लगभग 45,000 टेक्नीशियन की आवश्यकता होगी। इसके लिए राज्यों को प्रशिक्षण संस्थान खोलने होंगे।
ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष स्मित शाह ने बताया कि ड्रोन के लिए स्पेशल लॉन्चपैड बनाने की दिशा में राज्यों को आगे आना चाहिए। साथ ही अपने-अपने राज्यों में ड्रोन नीति को बढ़ावा और ड्रोन स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने बताया अब तक देश में 33,000 से अधिक ड्रोन पंजीकृत किए जा चुके हैं। 24,000 से अधिक ड्रोन पायलटों को प्रमाणित किया जा चुका है। साथ ही 120 ड्रोन मॉडल टाइप सर्टिफिकेशन प्रदान किए गए हैं। देशभर में 178 ड्रोन प्रशिक्षण स्कूलों को स्वीकृति प्रदान की गई है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय (हेलीकॉप्टर इमरजेंसी मेडिकल सर्विस) के निदेशक शंखेश मेहता ने बताया कि मेडिकल हेली सेवा को बढ़ावा देने के लिए प्रोजेक्ट संजीवनी शुरू की गई है। यह पहल नागरिक उड्डयन मंत्रालय, एम्स ऋषिकेश और उत्तराखंड राज्य सरकार के सहयोग से शुरू की गई है। इस परियोजना का उद्देश्य दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएं पहुंचाना है। उन्होंने बताया अब तक 65 से अधिक सफल राहत एवं बचाव अभियान पूरे किए चुके हैं। उन्होंने अन्य राज्यों से भी इस क्षेत्र में आगे आने का आग्रह किया।
एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक सुजॉय दे ने हवाई अड्डों के विकास मॉडल की जानकारी देते हुए कहा कि किसी भी नए एयरपोर्ट के निर्माण में कई तकनीकी और पर्यावरणीय मानकों को प्राथमिकता दी जाती है।
उन्होंने बताया कि विंड ओरियंटेशन (हवा की दिशा), सराउंडिंग टोपोग्राफी (आसपास का भौगोलिक परिदृश्य), फ्री एयर स्पेस, एनवायरनमेंट एसेसमेंट (पर्यावरणीय आंकलन) जैसे विभिन्न मानकों को ध्यान में रखकर ही एयरपोर्ट का विकास किया जाता है।
पवन हंस लिमिटेड के महाप्रबंधक पीके मरकन ने हेलीपैड विकास मॉडल पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राज्यों में स्थाई हेलीपैड का निर्माण होना बेहद जरूरी है। स्थाई हेलीपैड का उपयोग नागरिक व सैन्य संचालन, आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं, आपदा राहत एवं अन्य कार्यों में सहायक सिद्ध होता है। उन्होंने कहा स्थाई हेलीपैड के निर्माण से राज्यों में अधिक से अधिक हेलीकॉप्टर संचालन की संभावना भी बढ़ जाती है।
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(Udaipur Kiran) / विनोद पोखरियाल
