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मेरे पर कोई दबाव नहीं, जिसने राजस्थान का पानी पिया वो दबाव में कैसे आ सकता है : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़- फाइल फोटो

-अभिव्यक्ति इस स्तर पर पहुंच जाती है कि वहां दूसरे के मत का कोई मतलब नहीं है तो फिर अभिव्यक्ति अपना अस्तित्व खो देती है -जयपुर में पूर्व विधायक संघ की ओर से आयोजित सम्मेलन को उपराष्ट्रपति धनखड़ ने संबोधित किया

जयपुर, 30 जून (Udaipur Kiran) । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है क‍ि मैं ना दबाव में रहता हूं, ना दबाव देता हूं, ना दबाव में काम करता हूं, ना दबाव में किसी से काम कराता हूँ। उन्‍होंने कहा क‍ि जिसने राजस्थान का पानी पिया है वो दबाव में कैसे आ सकता है?’

धनखड़ ने सोमवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में पूर्व विधायक संघ की ओर से आयोजित सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे थोड़ी सी चिंता हुई। मेरे स्वास्थ्य की नहीं, मेरे मित्र पूर्व मुख्यमंत्री की, जिन्होंने कहा कि हम दबाव में हैं। राजस्थान की राजनीति में वह मेरे सबसे पुराने मित्र हैं और मेरे बड़े भारी शुभचिंतक भी हैं। मैं सार्वजनिक रूप से कह रहा हूं, क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है। वो चिंतामुक्त हो जाएं-मैं ना दबाव में रहता हूँ, ना दबाव देता हूँ, ना दबाव में काम करता हूँ, ना दबाव में किसी से काम कराता हूँ।

राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति की चर्चा करते हुए उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा क‍ि राज्यपाल जब प्रांत में होता है, तो ईजी पंचिंग बैग है। उन्होंने इस पर विचार रखते हुए कहा क‍ि यदि राज्य की सरकार केंद्र सरकार के अनुरूप नहीं है तो आरोप लगना बहुत आसान हो जाता है, पर समय के साथ बदलाव आया और उपराष्ट्रपति भी इसमें जुड़ गया और राष्ट्रपति जी को भी इस दायरे में ले लिया गया है। यह चिंतन, चिंता और दर्शन का विषय है। ऐसा मेरी दृष्टि में होना उचित नहीं है।

वर्तमान राजनीतिक माहौल पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ कहा, आज के दिन राजनीति का जो वातावरण है और जो तापमान है वो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। यह प्रजातंत्र के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है। उन्होंने कहा, “सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष में जाता रहता है, प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष में आता रहता है, पर इसका मतलब ये नहीं है कि दुश्मनी हो जाए। दरार हो जाए, दुश्मन हमारे सीमापार हो सकते हैं, देश में हमारा कोई दुश्मन नहीं हो सकता।”

राष्ट्रीय भावना को दलगत राजनीति से ऊपर बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा क‍ि जब हम देश के बाहर जाते हैं तो ना पक्ष होता है न प्रतिपक्ष होता है, हमारे सामने भारतवर्ष होता है और यह अब दिखा दिया गया है। यह कदम हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्रहित हमारा धर्म है, भारतीयता हमारी पहचान है, जहां भारत का मुद्दा उठेगा, हम विभाजित नहीं हैं। हमारे राजनीतिक मनभेद नहीं हैं। हमारे राजनीतिक मतभेद हैं, पर वो देश के अंदर हैं। एक बहुत बड़ा संकेत और दिया गया है कि जब देश की बात आती है तो राजनीतिक चश्मे से कुछ नहीं देखा जाएगा, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसको हर आदमी को पता लगना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के दिन देखना पड़ेगा कि भारत का मतलब दुनिया की एक-छठी आबादी यहाँ रहती है। दुनिया का कोई देश हमारे नजदीक तक नहीं आता है। 5000 साल की संस्कृति किसके पास है? यह बेजोड़ है बेमिसाल है। कई बार हम आवेश में आकर प्रश्न उठा देते हैं। जब चोट मुझे नहीं लगेगी तो मैं कहूँगा लड़ते रहो, लड़ाई जारी रखो यह अखबार में पढ़ने की बातें नहीं हैं। बड़ा कष्ट होता है। अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट लगती है और ऐसा क्यों? क्योंकि जो भारत आज से 11 साल पहले कहाँ था? यह राजनीतिक विषय नहीं है, हर कालखंड में देश का विकास हुआ है। हर कालखंड में महारथ हासिल किया गया है। 50 के दशक में, 60 के दशक में, 70 के दशक में बड़े-बड़े काम हुए हैं। पर जब इस कालखंड की बात करते हैं तो इसका अर्थ कदापि नहीं निकाला जाए कि किसी और कालखंड से तुलना कर रहे हैं। मैं दुनिया से तुलना कर रहा हूँ और दुनिया से इसलिए कर रहा हूँ कि जो भारत पहले दुनिया की पांच बडी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में एक था, आज वह दुनिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक है।

”हमने किन-किन को पीछे छोड़ा है, देखिए कुछ ही समय इंतजार कीजिए। जापान, जर्मनी, यूके, कनाडा, ब्राज़ील सब हमसे पीछे हैं। ऐसी छलांग लगी है कि गत दशक को दुनिया क्या कहती है, दुनिया कहती है कि पिछला दशक अर्थव्यवस्था के हिसाब से उसकी प्रगति के हिसाब से भारत ने जो प्रगति की है वह किसी और बड़े देश ने नहीं की है।” लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की भूमिका पर बल देते हुए उन्होंने कहा, प्रतिपक्ष विरोधी पक्ष नहीं है। प्रजातन्त्र में आवश्यकता है अभिव्यक्ति हो, वाद-विवाद हो संवाद हो, वैदिक तरीके से जिसको अनंतवाद कहते हैं।”

किसानों के हित में नीति निर्धारण पर उन्होंने कहा, “सरकार जो किसान को सब्सिडी दे रही है वह पूरी की पूरी किसान के पास पहुंचे तो हर किसान परिवार को हर साल इस सब्सिडी के एवज में 30,000 रुपये से ज्यादा मिल सकता है। उन्होंने आगे कहा कि यदि खाद की सब्सिडी सीधे किसान को मिले, तो नेचुरल फार्मिंग, ऑर्गैनिक फार्मिंग–यह निर्णय किसान करेगा। अमेरिका का हवाला देते हुए उन्होंने बताया क‍ि अमेरिका में जो आम घर है उसकी जो औसत सालाना आय है, वह किसान परिवार की औसत आय से कम है, किसान परिवार की ज्यादा है।

इस कार्यक्रम के अवसर पर राजस्थान के राज्यपाल, हरिभाऊ किसनराव बागड़े, राजस्थान की विधानसभा के अध्यक्ष, वासुदेव देवनानी, राजस्थान की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, राजस्थान प्रगतिशील मंच के संरक्षक हरिमोहन शर्मा एवं राजस्थान प्रगतिशील मंच के कार्यकारी अध्यक्ष जीतराम चौधरी एवं अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / संदीप

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