धर्मशाला, 29 जून (Udaipur Kiran) । डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में पैथोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. बाल चंद्र को उनके आविष्कार ब्लड एनालिसिस सिस्टम (बीएएस) के लिए भारत और अमेरिका में पेटेंट प्राप्त हुआ है। यूरोपीय पेटेंट कार्यालय ने इस प्रणाली के विभिन्न घटकों, कार्यप्रणाली और इसकी वैश्विक मौलिकता को मान्यता दी है। यह आविष्कार बीएएस एक नए चिकित्सा उपकरण की अवधारणा और डिजाइन से संबंधित है, जो विशेष रूप से गहन चिकित्सा इकाई आईसीयू में भर्ती गंभीर रोगियों तथा ऑपरेशन थियेटर में उच्च जोखिम वाली सर्जरी से गुजर रहे मरीजों के लिए उपयोगी है। यह एक गतिशील निगरानी और सुधार प्रणाली है, जो विभिन्न महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक बिंदुओं के स्तरों का पता लगाती है और मरीज की जरूरत के अनुसार ईलाज को अनुकूल बनाती है। इसमें बिना रोगी के शरीर से एक भी बूंद रक्त निकाले जांच पड़ताल को संभव बनाया गया है।
डॉ. बाल चंद्र हिमाचल प्रदेश स्थित सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने एम्स नई दिल्ली से एमबीबीएस और एमडी (पैथोलॉजी) की डिग्री प्राप्त की है। वर्तमान में वह डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, टांडा के पैथोलॉजी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ. बाल चंद्र द्वारा विकसित बीएएस के माध्यम से दर्जनों रक्त अणुओं और आयनों के स्तरों की निरंतर माप और रीयल-टाइम में परिणामों का प्रदर्शन संभव हो सकेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सब बिना रोगी के शरीर से एक भी बूंद रक्त निकाले संभव होगा। अब तक गंभीर रूप से बीमार रोगियों के रक्त के नमूने बार-बार लेकर प्रयोगशाला में भेजे जाते रहे हैं, जिससे ग्लूकोज, लैक्टेट, यूरिया, क्रिएटिनिन, बिलीरुबिन, सोडियम और पोटैशियम जैसे तत्वों के स्तरों की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में अक्सर एक घंटे से भी अधिक समय लग जाता है, जो कि गम्भीर रोगियों के लिए इलाज में महत्वपूर्ण देरी का कारण बनता है। इसके अलावा, ये परीक्षण परिणाम तेजी से बदलती रक्त स्थिति की केवल एक झलक भर होते हैं।
डॉ. बाल चंदर बताते हैं जैसे तीन घंटे की फिल्म की पूरी कहानी को कुछ तस्वीरों के माध्यम से समझने की कोशिश करना कठिन है, वैसे ही रक्त की जटिल और निरंतर बदलती तस्वीर को कुछ स्नैपशॉट्स के माध्यम से समझना भी कठिन होता है। इसके अलावा बीएएस इस प्रकार डिजाईन किया गया है कि यह दर्जनों रक्त अणुओं और आयनों के स्तर को एक साथ, बिना किसी दवा के, बहुत नियंत्रित और चयनात्मक तरीके से ठीक कर सकता है। यह प्रणाली डायलिसिस की तरह नहीं है, बल्कि यह रक्त में उपस्थित हजारों अणुओं में से किसी भी एक को हटाने की क्षमता रखती है, और यह सुधार भी निरंतर निगरानी में किया जा सकता है।
डॉ. बाल चंदर ने इस प्रणाली को अपने शिक्षक और सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा के एक सहपाठी की असमय मृत्यु के बाद डिजाईन करना शुरू किया। इस परियोजना की प्रेरणा इतनी सशक्त थी कि उन्होंने बिना किसी बाहरी सहायता या वित्तीय समर्थन के इस अत्याधुनिक प्रणाली को विकसित कर लिया। प्रारंभिक उद्देश्य केवल रक्त में मौजूद सैकड़ों अणुओं और आयनों के स्तरों का विश्लेषण करना था, ताकि मृत्यु के कारण को समझा जा सके, लेकिन यह आगे चलकर विश्लेषण और सुधार, दोनों के लिए एक अद्वितीय प्रणाली में बदल गया।
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया
