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पर्यावरण के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण और उनका वैज्ञानिक उपयोग आज की जरूरत : भूपेंद्र यादव

सम्मेलन का शुभारंभ करते केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव।

देहरादून, 25 जून (Udaipur Kiran) । भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून में आज केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने भारतीय संरक्षण सम्मेलन का उद्घाटन किया। सम्मेलन आज से शुरू हुआ और 27 जून को समाप्त होगा। सम्मेलन में देश भर से छात्र, शोधकर्ता, वन अधिकारी और संरक्षण पेशेवर शामिल हैं।

सम्मेलन की शुरुआत आईसीसीओएन 2025 के आयोजन सचिव और वैज्ञानिक एफ डॉ. बिलाल हबीब के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने भागियों को तीन दिवसीय कार्यक्रम के उद्देश्यों, प्रमुख विषयों और सहयोगी भावना से परिचित कराया। इसके बाद पहला पूर्ण सत्र हुआ, जिसमें आईआईएसईआर त्रिवेंद्रम की प्रोफेसर डॉ. हेमा सोमनाथन ने मधुमक्खियों की संवेदी और संज्ञानात्मक पारिस्थितिकी पर एक व्यावहारिक व्याख्यान दिया। उनकी प्रस्तुति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मधुमक्खियां कैसे देखती हैं, सीखती हैं और चारा ढूंढती हैं।

सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि आज जैव विविधता संरक्षण में भारत का नेतृत्व राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर है। इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस के शुभारंभ से लेकर सीओपी 28 में हमारे योगदान तक, हम साबित कर रहे हैं कि पारिस्थितिक जिम्मेदारी आर्थिक प्रगति के साथ-साथ चल सकती है। उन्होंने कहा कि मिष्ठी, अमृत धरोहर और ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम जैसी पहल परंपरा, तकनीक और समुदायों में विश्वास पर आधारित विकास मॉडल के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे हम विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहे हैं, आईसीसीओएन जैसे मंच आवश्यक हैं, क्योंकि वे शोधकर्ताओं, वन अधिकारियों और संरक्षणवादियों की अगली पीढ़ी को समाधानों पर पुनर्विचार करने के लिए एक साथ लाते हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं के विचार यह आकार देंगे कि वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व में कैसे रहा जा सकता है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं। श्री यादव ने कहा कि 2014 में भारत में 47 बाघ अभयारण्य थे और अब 2024 में हमारे पास 58 बाघ अभयारण्य हैं, जिसका अर्थ है कि पिछले 11 वर्षों में प्रति वर्ष एक बाघ अभयारण्य जोड़ा गया है।

उन्होंने कहा कि सरकार आर्द्रभूमि, डॉल्फिन, हाथी, बाघ, स्लोथ भालू के संरक्षण के लिए भी काम कर रही है। मानव वन्यजीव संघर्ष के बारे में श्री यादव ने ’बाघ अभयारण्य के बाहर बाघ’ एक नए प्रकार के संघर्ष की चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकार इस चिंता को हल करने के लिए काम कर रही है।

समापन वक्तव्य में उन्होंने संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण पर जोर दिया और कहा कि उनका वैज्ञानिक रूप से उपयोग आज की जरूरत है।

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(Udaipur Kiran) / Vinod Pokhriyal

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