Uttar Pradesh

आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर विशेष प्रतिबंध लगे: रामाशीष

आपातकाल की बरसी पर आरएसएस की गोष्ठी

—प्रज्ञा प्रवाह के वरिष्ठ प्रचारक बोले – 98 स्वयंसेवक यातना के कारण दिवंगत हुए

आपातकाल में राजनीतिक अस्थिरता विषयक संगोष्ठी

वाराणसी, 25 जून (Udaipur Kiran) । जर्मनी में 1933 में हिटलर द्वारा जिस प्रकार मौलिक अधिकारों का शमन किया गया था, ठीक उसी तरह 42 वर्षों बाद भारत में 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू कर लोकतंत्र का गला घोंटा गया। 26 जून 1975 को देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस सहित अनेक विपक्षी नेताओं को जेलों में डाल कर घोर यातनाएं दी गईं। उपरोक्त विचार प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष के हैं। वे बुधवार को संस्कार भारती एवं विश्व संवाद केन्द्र काशी की ओर से आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे। यह संगोष्ठी लंका स्थित केंद्र के माधव सभागार में आपातकाल में राजनीतिक अस्थिरता विषय पर आयोजित की गई थी।

बतौर मुख्य वक्ता वरिष्ठ प्रचारक रामाशीष ने बताया कि 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित रैली में भारी जनसमूह उमड़ा था। सरकार इस जनाक्रोश से घबरा गई और उसी रात अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। उन्होंने याद दिलाया कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के आरोप में इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया था। इसके बाद लोकतंत्र के इस काले अध्याय की शुरुआत हुई, जो पूरे 21 महीनों तक चला।

रामाशीष ने कहा, “आपातकाल का प्रभाव केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि समाज के हर क्षेत्र पर पड़ा। इन्दिरा गांधी ने विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जेल में अमानवीय यातनाएं दी गईं। इसके विरोध में संघ के स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह प्रारंभ किया।” उन्होंने जानकारी दी कि 14 अगस्त 1975 से 26 जनवरी 1976 तक एक लाख स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी, जिनमें से 98 स्वयंसेवक यातना के कारण दिवंगत हो गए। इस दमन का प्रभाव न्यायपालिका और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ – पत्रकारिता – पर भी पड़ा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता संजय गांधी के आदेश पर उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर बुलडोजर चला दिए गए। प्रेस पर प्रतिबंध होने के कारण यह खबर जनता तक नहीं पहुंच पाई। प्रचारक रामाशीष ने बताया कि इन्दिरा गांधी ने संविधान की मूल भावना के विपरीत 42वां संशोधन कर ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ जैसे शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा।

आरएसएस के प्रचारक ने अनुभव साझा किए

गोष्ठी में आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक रामसूचित पाण्डेय ने भी आपातकाल के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि वे उन दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यरत थे। सीआईडी द्वारा उनसे लगातार पूछताछ होती थी और वे पुलिस अधिकारियों से छुप-छुप कर अपने घर जाया करते थे। उन्हीं दिनों विश्वविद्यालय परिसर में स्थित संघ भवन को भी गिरा दिया गया था। रामसूचित पाण्डेय के अनुसार, संघ के स्वयंसेवकों के लिए आपातकाल किसी द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम से कम नहीं था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कार भारती काशी महानगर के अध्यक्ष रामवीर शर्मा ने की, जबकि संचालन डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी ने किया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से संघ के वरिष्ठ प्रचारक जागेश्वर, संस्कार भारती के उपाध्यक्ष प्रेमनारायण, संजय सिंह, प्रमोद पाठक, तथा प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक डॉ. कमलेश शर्मा आदि ने भाग लिया।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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