
दतिया, 25 जून (Udaipur Kiran) । इंदिरा गांधी सरकार के दौर में 40 साल पहले देश पर आपातकाल थोपा गया था। वरिष्ठ पत्रकार रहे एडवोकेट एवं लोकतंत्र सेनानी स्व. टी.एन.चतुर्वेदी जो अपातकाल के दौरान 19 माह जेल में रहे। उनकी धर्म पत्नी श्रीमती आशा चतुर्वेदी ने एक साक्षातकार में बताया कि इस दौरान उन पर कितनी मुसीवते आई।
उन्होंने बताया कि 25 और 26 जून की दरमियानी रात को सन 1975 में आज से 50 वर्ष पूर्व कांग्रेस विरोधी पार्टियों के नेताओं को यहां तक की छात्र नेताओं तक को बिना कोई कारण बताए जेलों में ठूंस दिया गया। नो अपील- नो वकील-नो दलील का सिद्धांत जबरिया चल रहा था। कारण मात्र इतना सा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को सत्ता से अत्यधिक मोह था और उनका चुनाव अदालत द्वारा रद्द कर दिए जाने के कारण उन्हें पद छोड़ने की स्थिति आ गई थी, जिस कारण वे अत्यंत बौखला रहीं थीं, जिसे उन्होंने पूरे देश पर उतार दिया।
इस दौरान मीडिया को भी कंट्रोल करने की पूरी कोशिश हुई थी। अखबारों पर सेंसरशिप लगी तो वहीं पत्रकार गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए और न्यूज एजेंसियों का विलय कर दिया गया।
मध्य प्रदेश का दतिया जिला भी इससे अछूता नहीं था। मेरे पति स्वर्गीय टी एन चतुर्वेदी, उनके साथ ही स्व तुलसीराम दागी , स्व कण्ठमणि बुधौलिया, स्व हरिहर निवास श्रीवास्तव, स्व श्रीराम दुबे, पंकज शुक्ल, अनगिनतों लोग जेलों में बंद कर दिए गए। यह पता नहीं था कि वे कब जेल से बाहर आएंगे। जेल के अंदर इनके साथ क्या व्यवहार हो रहा है और जेल के बाहर इनके परिजनों से क्या व्यवहार हो रहा है, कोई जानकारी किसी को नहीं थी।
जेल के अंदर स्लो पॉइजनिंग तक की गई, खाने को कंकरीले, कांचयुक्त रोटियां दी गईं, सजायाफ्ता बंदियों से बुरा व्यवहार किया गया।
उन्होंने आगे बताया कि जेल के अंदर मृत्यु हो जाने पर भयवश लाश उठाने तक के लिए परिजन नहीं आते थे। मां सहित परिजनों की मृत्यु हो जाने पर पैरोल तक नहीं दी जाती थी। बंदियों के व्यवसाय चैपट हो गए, नौकरियां छूट गई, दर्द न सिर्फ उन्होंने अपितु परिजनों ने सारे जीवन भोगा और आज भी झेलने को मजबूर है। जेल के अंदर बीमार हो जाने पर इलाज तक मुहैया नहीं था।
लोकतंत्र का चैथा स्तंभ मीडिया पर सेंसर लगा दिया गया बिना परमीशन वह कुछ भी प्रसारित नहीं कर सकता था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आम नागरिक से छीन ली गई। उन दिनों जब मेरे तीन छोटे छोटे बच्चे थे, एक दुधमुंहा भी था, उन दिनों घर में एक मात्र कमाने वाले मेरे पति टी एन चतुर्वेदी के जेल चले जाने पर घर में भूखों मरने के हालत आ गए थे। येन, केन, प्रकारेण सरस्वती शिशु मंदिर की नौकरी करके मैंने तो बच्चे पाल लिए, अनेकों परिवार तो उजड़ ही गए। ऐसी विभीषिका की पुनरावृत्ति से ईश्वर रक्षा करें और इस देश के लोकतंत को अजर और अमर रखें। आज गुरूवार को भोपाल में श्रीमती आशा चतुर्वेदी का मुख्यमंत्री निवास पर अपातकाल दिवस पर सम्मानित किया जायेगा।
हिन्दुस्थान समाचार/संतोष
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(Udaipur Kiran) / राजू विश्वकर्मा
