Chhattisgarh

एक एकड़, एक साल, एक लाख : जिले में औषधीय पौधों की खेती की प्रक्रिया शुरू

औषधि पौधों की जानकारी देते हुए विशेषज्ञ।

धमतरी, 25 जून (Udaipur Kiran) । कलेक्टर अबिनाश मिश्रा की पहल पर 25 जून से धमतरी जिले में औषधीय पौधों की खेती की प्रक्रिया शुरू हो गई। अगले एक सप्ताह में 21 गांवों में 80 एकड़ शासकीय भूमि पर लगभग 38 स्व सहायता समूहों की महिलाएं खस, ब्राम्ही और पचौली के पौधे रोपेंगी। किसानों सहितं महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यों की आय बढ़ाने में औषधीय पौधों की खेती विशेष पहल की शुरूआत मानी जा रही है। औषधीय पौधों की खेती से विशेषज्ञों ने एक एकड़ रकबे में एक साल में 75 हजार रुपये से लेकर एक लाख रूपये तक के शुद्ध मुनाफे का अनुमान लगाया है।

जिले में इस खेती के लिए औषधीय पादप बोर्ड की सहायता ली जा रही है। बोर्ड के सीईओ जेसीएस राव ने आज बुधवार काे कुरुद में एक सौ से अधिक महिलाओं को औषधीय पौधों की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने इसके लिए अनुदान, प्रशिक्षण, पौधे आदि की उपलब्धता के बारे में भी बताया। सीईओ ने उपस्थित महिलाओं को खेतों में रोपने के लिए औषधीय पौधे निःशुल्क उपलब्ध कराने, पौधों को लगाने के लिए तकनीकी मार्गदर्शन देने, पौधों की देखरेख करने, उनका प्रसंस्करण करने से लेकर उन्हें बेचने के लिए भी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने की जानकारी दी। इस दौरान तीन महिला समूहों को औषधीय पौधों की खेती शुरू करने के लिए कॉन्टेक्ट फार्मिंग के तहत औषधीय बोर्ड से मान्यता प्राप्त खरीददारों ने प्रारंभिक राशि के रूप में चार लाख रूपये के धनादेश भी दिए। इस कार्यशाला में सीईओ जिला पंचायत रोमा श्रीवास्तव सहित कृषि, उद्यानिकी, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहे।

जिले में कुरुद और मगरलोड विकासखण्ड में पहले चरण में खस 68 एकड़ रकबे में, ब्राम्ही नौ एकड़ रकबे में और पचौली तीन एकड़ रकबे में लगाई जाएगी। 21 ग्राम पंचायतों के 21 गांवों के 38 स्व सहायता समूहों की लगभग 380 महिलाएं यह खेती करेंगे। जिले में पहले चरण में औषधीय पौधों की खेती शासकीय भूमि पर कराई जा रही है। इसके अनुभव के बाद निजी किसानों के खेतों में भी औषधीय फसलें लगवाई जाएंगी। पहले चरण में नारी, गुदगुदा, परखंदा, परसवानी, मंदरौद, सिरसिदा, बोरसी, लड़ेर, सोनेवारा, कपालफोड़ी, मेघा, गिरौद, सौंगा, बुड़ेनी, कण्डेल, बलियारा, झूरानवागांव, सारंगपुरी, देवपुर, सोरम और पोटियाडीह में महिला स्व सहायता समूह खस, ब्राम्ही और पचौली की खेती करेंगी। अगले एक सप्ताह में इन सभी गांवों में चिन्हांकित स्थलों पर पौधों का रोपण शुरू हो जाएगा।

कलेक्टर ने कहा: ऐतिहासिक दिन, इससे किसानों-महिलाओं की आय बढ़ेगी

कलेक्टर अबिनाश मिश्रा ने आज के दिन को धमतरी जिले के लिए ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि महिला समूहों को औषधीय पौधों की खेती से जोड़ने के सफल प्रयास से एक तरफ इस खेती को बढ़ावा तो मिलेगा ही, इसके साथ-साथ महिला सशक्तिकरण, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे अभियानों को भी गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि औषधीय पौधों की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली है। देखरेख, सिंचाई, खाद-दवाई आदि का खर्चा बहुत कम है, लेकिन इसकी मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है। इन उत्पादों की मार्केटिंग की व्यवस्था सुनिश्चित होने के कारण महिलाओं को इससे अच्छा खासा लाभ मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थित सुधरेगी।

औषधीय पादप बोर्ड देगा तकनीकी मार्गदर्शन, मान्यता प्राप्त खरीददारों द्वारा उपज खरीदने की गारंटी

कुरुद में आयोजित एक दिनी कार्यशाला में स्व सहायता समूहों की महिला सदस्यों को औषधीय पौधों की खेती के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन दिया गया। कार्यशाला में ही चयनित प्लाट पर इन महिलाओं को पौधरोपण के तरीकों की हेण्डआन जानकारी भी दी गई। उन्हें खेत तैयार करने से लेकर पौधों के बीच दूरी, दो लाईनों के बीच दूरी, जरूरी खाद-उर्वरक, सिंचाई, निंदाई, गुड़ाई के बारे में विस्तार से बताया गया। औषधीय पादप बोर्ड के सीईओ राव ने महासमुंद जिले में औषधीय पौधों की खेती कर रहे किसानों के खेतों में भी धमतरी-कुरूद की महिलाओं को प्रशिक्षण भ्रमण पर ले जाने की जानकारी दी।

कार्यशाला में आज बोर्ड के अनुबंधित खरीददार छत्तीसगढ़ स्टीरिया एंड हर्बल्स, सुगंध एरोमेटिक्स, ईस्टा हर्बल्स और विराध्या इंटरप्रायजेस के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे। प्रतिनिधियों ने कुरूद विकासखण्ड के देवी महिला कलस्टर संगठन चर्रा को 35 एकड़ रकबे में खस की खेती करने के लिए प्रारंभिक राशि के रूप में एक लाख 65 हजार रुपये का धनादेश सौंपा। इसी तरह धमतरी विकासखण्ड के आंचल महिला कलस्टर संगठन संबलपुर को एक लाख रुपये और मगरलोड विकासखण्ड के अनंतदीप महिला कलस्टर समूह भरदा को एक लाख 35 हजार रुपये की राशि की धनादेश दिए गए। महिला समूह की सदस्य दिलेश्वरी साहू ने कहा कि इसके बारे में पहले जानकारी नहीं थी। समूह केवल पापड़, बड़ी, साबून, बांसकला या फिर सेंट्रिंग, मशरूम उत्पादन, रंग-गुलाल बनाने तक ही सीमित थे। औषधीय पौधों की खेती के नये काम से सभी को नई-नई जानकारियां मिल रहीं हैं।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

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