


गुवाहाटी, 22 जून (Udaipur Kiran) । “भारत की सनातन परंपरा में बौद्ध दर्शन और शिक्षाएं” विषय पर एक व्याख्यान आज गुवाहाटी के उजानबाजार स्थित विवेकानंद केंद्र में आयोजित किया गया। जिसका आयोजन सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था प्रज्ञा और सामाजिक संगठन बुद्ध चेतना-भारत द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस व्याख्यान का उद्देश्य बौद्ध दर्शन और भारत की सनातन परंपरा के बीच संबंधों की पड़ताल करना था।
कार्यक्रम की शुरुआत अरूप बुजरबरुवा के स्वागत भाषण से हुई, जिसके बाद दीप प्रज्वलन और फिर भक्ति गीत प्रस्तुत किया गया।
मुख्य वक्ता ‘असम गौरव’ सौम्यदीप दत्ता ने बौद्ध दर्शन के प्रमुख सिद्धांतों को बताते हुए व्याख्यान आरंभ किया। उन्होंने चार आर्य सत्य – दुःख, उसके कारण, निवारण और मार्ग तथा अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या की। उन्होंने उस गलत विमर्श पर भी प्रकाश डाला, जो लगभग पिछले 120 से 150 वर्षों से यह स्थापित करने का प्रयास करता है कि बौद्ध धर्म पूरी तरह हिंदू धर्म से अलग है।
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद और बाद की राष्ट्रीय आंदोलनों ने बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म से अलग धर्म के रूप में प्रस्तुत करने में भूमिका निभाई। अब समय आ गया है कि इन भ्रांतियों के विरुद्ध खड़ा हुआ जाए और हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म की समानताओं को उजागर किया जाए- जैसे दोनों परंपराएं प्राचीन भारत में उत्पन्न हुईं, समान सांस्कृतिक व दार्शनिक पृष्ठभूमि साझा करती हैं, मोक्ष या बोधि प्राप्त करना दोनों का उद्देश्य है। मार्ग और व्याख्याएं भले भिन्न हों, पर दोनों ही कर्म, धर्म और आध्यात्मिक उन्नति को महत्त्व देती हैं।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में ‘असम गौरव’ सौम्यदीप दत्ता, मुख्य अतिथि करुणा शास्त्री महाथेर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक बासिष्ठ बुजरबरुवा, प्रज्ञा के महासचिव हितेश्वर चक्रवर्ती, बुद्ध चेतना भारत की समन्वयक नबनीता शर्मा और अन्य गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही। छात्र, शोधार्थी एवं दर्शन और आध्यात्म में रुचि रखने वाले लगभग 250 प्रतिभागी इस आयोजन में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के समापन से पूर्व प्रश्नोत्तर सत्र से पहले मुख्य अतिथि करुणा शास्त्री महाथेर को प्रज्ञा और बुद्ध चेतना भारत द्वारा सम्मानित किया गया।
(Udaipur Kiran) / देबजानी पतिकर
