Delhi

छंद विधान विशेष पर लिखी हुई पुस्तक हिंदी छंद मंजूषा का हुआ लोकार्पण 

हिंदी छंद मंजूषा पुस्तक का लोकार्पण

नई दिल्ली, 11 नवंबर (Udaipur Kiran) । दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वारा छंद के विद्वान आचार्य अनमोल की पुस्तक का लोकार्पण हिंदी भवन नई दिल्ली में संपन्न हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार इंदिरा मोहन ने की। कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि के रूप में वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं हिंदी भाषा के मर्मज्ञ अनिल जोशी उपस्थित रहे।

विशिष्ट अतिथि के रूप में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के प्रोफेसर बी नंदा उपस्थित रहे। इसी अवसर पर अमेरिका से पधारे हुए प्रसिद्ध छंद कवि एवं साहित्य मंच के अध्यक्ष इंद्रदेव मिश्र ‘देव’ उपस्थित रहे।

सम्मानित अतिथि के रूप में अंतरराष्ट्रीय कवि गजेंद्र सोलंकी का सामीप्य मिला तथा कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो० जगदेव कुमार शर्मा उपस्थित रहे। इसी अवसर पर हिंदी भवन के सचिव डॉ गोविंद व्यास भी मंच पर उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है छंद शास्त्र के विद्वान आचार्य अनमोल द्वारा लिखित छंद विधान की पुस्तक हिंदी छंद मंजूषा वर्तमान समय में छंद शास्त्र सीखने के लिए तथा छंद प्रेमियों को मार्गदर्शन देने के लिए बहुत ही प्रासंगिक है। वास्तव में ऐसी पुस्तक वर्तमान समय में या तो लिखी नहीं जा रही अथवा थोड़े से विषय को लेकर ही लिखी जा रही हैं।

इस पुस्तक में आचार्य अनमोल ने छंद लेखन के ज्ञान को उदाहरण सहित लिखकर गागर में सागर भर दिया है। इस ग्रंथ के प्रारंभ में शब्द शक्ति, काव्य में आने वाले दोषों का परिहार, कविता और गीत में मौलिक अंतर आदि को बड़े विस्तार के साथ बताया गया है। विषय के वर्णन में उन्होंने काव्य में प्रयोग होने वाले 80 छंदों का वर्णन अपने ही उदाहरण द्वारा किया है।

मुक्त छंद और छंदोबद्ध कविता के अंतर को बड़े ही प्रामाणिक ढंग से बताया है। आचार्य अनमोल ने स्पष्ट कहा है की जितनी काव्य की गरिमा और काव्य शक्ति छंदोबद्ध कविता में होती है, उतनी मुक्त छंद, नई कविता, अकविता और प्रयोगवादी कविता में नहीं होती। इसीलिए छंद में लिखी हुई कविता को लोग आज घरों में गुनगुनाते हुए मिल जाते हैं।

पुस्तक के लेखक आचार्य अनमोल ने आगे बताया है कि कुछ ऐसे स्वयंभू छंद हैं, जिन्हें कुछ तथाकथित कवि अनावश्यक रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। ग्रंथ के आखिरी में लेखक ने नवोदित कवियों को संबोधित करते हुए एक सारगर्भित लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने बताया है की कविता लेखन प्रेम के कारण कुछ लोग सहज और आरामदायक कविता को चुन रहे हैं, जिनका कोई विशेष औचित्य नहीं है।

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(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी

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