Delhi

सीबीपीआरओ ने अपनी मांगों का ज्ञापन वित्त मंत्रालय को सौंपा: अशवनी राणा

जंतर-मंतर पर धरना देते सीबीपीआरओ और बैंक पेंशनभोगी कर्मचारी
जंतर-मंतर पर धरना देते सीबीपीआरओ और बैंक पेंशनभोगी कर्मचारी
जंतर-मंतर पर धरना देते सीबीपीआरओ और बैंक पेंशनभोगी कर्मचारी

नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । देशभर से आए हजारों बैंक पेंशनभोगियों और सेवानिवृत्त संगठनों के समन्वय (सीबीपीआरओ) और अखिल भारतीय बैंक पेंशनभोगी एवं सेवानिवृत्त परिसंघ (एआईबीपीएआरसी) ने अपनी मांगों को लेकर बुधवार को राजधानी नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया। इसके साथ ही उन्‍होंने मांगों का एक ज्ञापन डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज, वित्त मंत्रालय को सौंपा है।

वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अशवनी राणा ने बताया कि बैंक पेंशनभोगियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों अधिकारियों ने अपनी लंबे समय से लंबित मांगों को लेकर धरना दिया है। उन्‍होंने कहा कि देशभर के हजारों बैंक पेंशनभोगियों, सेवानिवृत्त कर्मचारियों और अधिकारियों ने अपनी मांगों को लेकर आवाज बुलंद की है। उन्‍होंने कहा कि सीबीपीआरओ ने अपनी मांगों को लेकर का एक ज्ञापन डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज, वित्त मंत्रालय को सौंपा है।

राणा ने कहा कि सीबीपीआरओ की अगुवाई में सेवानिवृत्त कर्मचारियों और अधिकारियों की मुख्य मांगें इस प्रकार हैंः

-आरबीआई, नाबार्ड के समान बैंकों के पेंशनर्स की पेंशन को भी रिवाइज किया जाए।

– सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारियों को रियायत दरों पर हेल्थ इंश्योरेंस उपलब्ध कराया जाए।

-सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारियों अधिकारियों की मांगों पर बातचीत के लिए पेंशनर्स संगठनों को बुलाया जाए।

-स्पेशल अलाउंस को पेंशन और ग्रेच्युटी की गणना के लिए बेसिक वेतन में शामिल किया जाए।

-पेंशन की कम्यूटेड राशि को 15 वर्ष की जगह 10 वर्षों में ही रिकवर किया जाए।

उन्‍होंने कहा कि सरकार को सोचना चाहिए कि वरिष्ठ पेंशनर्स को अपनी मांगों को मनवाने के लिए सड़क पर क्यों उतरना पड़ा है। हालांकि, राणा ने कहा कि सरकार कह चुकी है कि इन मांगों पर विचार किया जाएगा। उन्‍होंने कहा कि कुछ मांगों जैसे फैमिली पेंशन और 2003 तक के पेंशनर्स के 100 फीसदी डीए को सरकार पहले ही मान चुकी है। राणा ने कहा कि वॉयस ऑफ बैंकिंग की मांग है कि इससे पहले कि वरिष्ठ पेंशनर्स ज्यादा वरिष्ठ हो जाएं या दुनिया से चले जाएं, सरकार को इनकी मांगों को मान लेना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / प्रजेश शंकर

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