Haryana

जींद: प्रथम पातशाही गुरु नानक देव जी का विवाह पर्व श्रद्धा और धूमधाम से मनाया

गुरूबाणी का श्रवण करते हुए महिलाएं।

जींद , 11 सितंबर (Udaipur Kiran) । प्रथम पातशाही गुरु नानक देव जी का विवाह पर्व ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में श्रद्धा और धूमधाम से मनाया गया। गुरु घर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह के अनुसार इस अवसर पर गुरुद्वारा साहिब के शब्दी जत्थे द्वारा फेरी का आयोजन किया गया। उसके बाद गुरुद्वारा साहिब में गुरमत समागम का आयोजन किया गया। जिसमें हिसार से आए भाई कुलदीप सिंह के रागी जत्थे ने गुरु नानक देव जी के विवाह संबंधी सभी रस्मों को अपनी रसमयी वाणी में पिरो कर संगतों को सुना कर निहाल कर दिया।

उन्होंने बताया कि गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला शहर में गुरुद्वारा कंध साहिब में बीबी सुलखनी के साथ हुआ था। जहां हर साल गुरु नानक देव जी की वैवाहिक वर्षगांठ को विवाह की तर्ज पर उत्सव की तरह मनाया जाता है। लड़की पक्ष के घर की जगह गुरूद्वारा डेहरा साहिब बना हुआ है। जोकि गुरूद्वारा कंध साहिब के पास ही है। ग्रंथों के अनुसार गुरूजी के ससुराल वालों ने उस समय बारात को एक कच्चे घर में ठहराया था। इसकी दीवार आज भी वैसे ही खड़़ी है। इसे शीशे के फ्रेम में संजो कर रखा गया है।

हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कार्यकारिणी की सदस्य बीबी परमिंद्र कौर ने गुरूद्वारा कंध साहिब के नाम को लेकर कहानी बताई कि गुरूजी उस समय कच्ची दीवार (कंध) का सहारा लेकर बैठे थे। वधु पक्ष की एक वृद्ध महिला को लगा कि कहीं ऐसा न हो कि लड़किंया शरारत कर के कच्चदी दीवार को गिरा दें और दूल्हे को चोट आ जाए या वो बुरा मान जाएं। यह बात उन्होंने गुरूजी से कही तो वो मुस्कराते हुए बोले कि माता जी यह दीवार युगों-युगों तक नही गिरेगी। इतिहास गवाह है कि 500 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी मिट्टी की यह दीवार ज्यों की त्यों गुरूद्वारा कंध साहिब में मौजूद है। इस अवसर पर रागी कुलदीप सिंह ने सिख रीति रिवाज के अनुसार विवाह के दौरान होने वाले लावां फेरों के महत्व को बताते हुए कहा कि सिख विवाह की प्रतिज्ञा जोकि विवाह के आध्यात्मिक चरणों को दर्शाती है कि पति-पत्नी वो नहीं जो साथ-साथ बैठते हैं बल्कि पति-पत्नी वो हैं जिनके शरीर बेशक दो है लेकिन आत्मिक रूप से वो एक होते हैं। इस अवसर पर गुरु का अटूट लंगर एवं मिष्ठान संगतों में बरताया गया। समागम में गुरुद्वारा मैनेजर गुरविंदर सिंह चौगामा, जत्थेदार गुरजिंद्र सिंह, जोगिंद्र सिंह पाहवा, कमल चुघ, जसकरन सिंह, हैड ग्रंथी ज्ञानी गुरविंदर सिंह रत्तक व दर्शन सिंह उपस्थित रहे।

(Udaipur Kiran) / विजेंद्र मराठा

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