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महिलाओं के खिलाफ हिंसा को ‘लक्षणात्मक रोग’ कहा जाना निंदनीय : उपराष्ट्रपति

भारती कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

नई दिल्ली, 30 अगस्त (Udaipur Kiran) । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कृत्यों को “लक्षणात्मक रोग” के रूप में संदर्भित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल की निंदा की।

धनखड़ की टिप्पणी 21 अगस्त को सिब्बल द्वारा पारित विवादास्पद प्रस्ताव के बाद आई है, जिसमें कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार-हत्या मामले को संबोधित किया गया था। सिब्बल के प्रस्ताव में इस घटना को एक लक्षणात्मक रोग बताया गया था, जिसकी एससीबीए के भीतर और बाहर काफी आलोचना हुई थी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में ‘विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्ताव में की गई टिप्पणियां महिलाओं के खिलाफ हिंसा की गंभीरता को कम करती हैं और उच्च पद पर बैठे किसी व्यक्ति की छवि को खराब करती हैं। उन्होंने कहा, “मैं आश्चर्यचकित हूं; मैं दुखी हूं और कुछ हद तक चकित हूं कि सर्वोच्च न्यायालय के बार के एक सदस्य और संसद का एक सदस्य ऐसा कहते हैं? लक्षणात्मक रोग और यह सुझाव देते हैं कि ऐसी घटनाएं सामान्य हैं? शर्मनाक! ऐसी स्थिति की निंदा करने के लिए शब्द भी कम हैं। यह उस उच्च पद के साथ सबसे बड़ा अन्याय है।”

उपराष्ट्रपति ने इस तरह के बयान को अत्यंत शर्मनाक बताते हुए कहा कि ये बयान महिलाएं और बेटियों की पीड़ा को तुच्छ बनाते हैं। उन्होंने कहा, “क्या आप पार्टी के हितों या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसा कहते हैं? आप अपने अधिकार का इस्तेमाल करके इस तरह के घृणित अन्याय को बढ़ावा देते हैं? क्या मानवता के लिए इससे बड़ा अन्याय हो सकता है? हम हमारी बेटियों की पीड़ा को तुच्छ बनाया जाये ? अब नहीं।”

उपराष्ट्रपति ने नागरिकों से राष्ट्रपति के “बस बहुत हुआ” के आह्वान को दोहराने की अपील की और कहा, “राष्ट्रपति ने कहा, बस बहुत हुआ!” आइए, इसे राष्ट्रीय आह्वान बनाएं। मैं चाहता हूं कि यह आह्वान सभी के लिए हो। चलिए संकल्प लें कि हम एक ऐसा सिस्टम बनाएंगे जिसमें कोई भी लड़की या महिला पीड़ित न हो। आप हमारी सभ्यता को नुकसान पहुंचा रहे हैं, आप अति क्रूरता का प्रदर्शन कर रहे हैं। किसी भी चीज को बीच में न आने दें और मैं चाहता हूं कि देश के हर नागरिक इस समय की सटीक चेतावनी को सुने।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी बेटियों और महिलाओं के मन में डर एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, “जहां महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित नहीं महसूस करतीं, वह समाज सभ्य नहीं है। वह लोकतंत्र भी धूमिल हो जाता है; यह हमारे विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा है।”

उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “मैं आप सभी से अपील करता हूं कि आप वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनें। यह आपके ऊर्जा और क्षमता को उजागर करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।” उन्होंने कहा, “लड़कियां हमारे देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।”

लिंग आधारित असमानताओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “क्या हम कह सकते हैं कि आज लिंग आधारित असमानता नहीं है? समान योग्यता के बावजूद भिन्न वेतन, बेहतर योग्यता के बावजूद समान अवसर नहीं। यह मानसिकता बदलनी चाहिए। पारिस्थितिकी तंत्र को समान होना चाहिए, असमानताएं समाप्त होनी चाहिए।”

उपराष्ट्रपति ने भारत की वर्तमान विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रगति को महिलाओं की पूर्ण भागीदारी के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत को एक विकसित देश के रूप में सोचने का विचार बिना लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी के तर्कसंगत नहीं है। उनके पास ऊर्जा और प्रतिभा है। उनकी भागीदारी के साथ, भारत के विकसित होने का सपना 2047 से पहले पूरा होगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक संवैधानिक आदेश है। यह निदेशक सिद्धांतों में है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि इसे विलंबित किया जा रहा है, लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड जो लंबे समय से किनारे पर है, आपके लिए एक छोटे न्याय का उपाय है। यह कई तरीकों से मदद करेगा, लेकिन मुख्य रूप से यह आपके लिए मददगार होगा।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, भारती कॉलेज की अध्यक्ष प्रो. कविता शर्मा, भारती कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. सलोनी गुप्ता, छात्र, फैकल्टी सदस्य और अन्य सम्मानित व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार

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