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पुरुषोत्तम अग्रवाल समेत सात विद्वानों को साहित्य अकादमी का भाषा सम्मान

पुरुषोत्तम अग्रवाल को सम्मानित करते साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक।

नई दिल्ली, 29 अगस्त (Udaipur Kiran) । साहित्य अकादमी ने वर्ष 2021 एवं 2023 के लिए सात विद्वानों को गुरुवार को भाषा-सम्मान से पुरस्कृत किया। उत्तरी क्षेत्र के कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य के लिए पुरुषोत्तम अग्रवाल और दक्षिणी क्षेत्र के लिए बेतवोलु रामब्रह्मम को पुरस्कृत किया गया।

साहित्य अकादमी के नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने बताया कि पुरस्कृत रचनाकारों में कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य-2021- उत्तरी क्षेत्र के लिए पुरुषोत्तम अग्रवाल एवं दक्षिणी क्षेत्र के लिए बेतवोलु रामब्रह्मम, कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य-2023- उत्तर क्षेत्र के लिए अवतार सिंह को और दक्षिण क्षेत्र के लिए केजी पौलोस को प्रदान किए गए। दुर्गा चरण शुक्ल को बुंदेली भाषा तथा साहित्य की समृद्धि में दिए गए उत्कृष्ट योगदान के लिए भाषा सम्मान वर्ष-2023 के लिए और रेंथ्लेइ ललरोना एवं रौज़ामा चौङथू को मिज़ो भाषा तथा साहित्य की समृद्धि के लिए दिए गए। दुर्गा चरण शुक्ल अस्वस्थता के कारण पुरस्कार ग्रहण करने नहीं आ सके। अलंकृत विद्वानों को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की राशि, उत्कीर्ण ताम्रफलक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए।

भाषा-सम्मान अर्पण समारोह की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमारी ऋषि परंपरा का सम्मान है, जो एक तरह से भारतीय ज्ञान परंपरा का भी सम्मान है। हम इसे भारतीय ज्ञान का उत्सव कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि कालजयी और मध्यकालीन साहित्य को आम लोगों तक उनकी भाषा में पहुंचाने का बेहद महत्वपूर्ण कार्य इन भाषा विद्वानों ने किया है। अतः इनको पुरस्कृत कर साहित्य अकादमी भी अपने को सम्मानित होता हुआ महसूस कर रही है।

भाषा सम्मान से अलंकृत पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि यह सम्मान अर्जित करना मेरे लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने काम के जरिए आरंभिक आधुनिक कालीन भारत खासकर उत्तर भारत को समग्रता में समझने की कोशिश की है। यह मेरी स्पष्ट समझ है कि 15वीं, 16वीं, 17वीं सदी का भारत उद्धार के लिए यूरोपीय आधुनिकता के अवतार की प्रतीक्षा करता भारत नहीं, स्वयं अपनी परंपरा से पनप रही आधुनिकता की ओर बढ़ता भारत था। हम अतीत से बहुत कुछ सीख सकते हैं लेकिन तभी जबकि अतीत के अतीतपन का सम्मान करते रहें।

अपने स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादमी के सचिव श्रीनिवासराव ने कहा कि भारत का सारा ज्ञान मानव की भलाई के लिए है और वह समाज के हर वर्ग के लिए उपलब्ध है। हमारे ज्ञान का स्वरूप वैश्विक है। अतः किसी भी भाषा का लुप्त होना एक समाज की संस्कृति का लुप्त होना है। अकादमी इन वाचिक भाषाओं के संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत है।

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(Udaipur Kiran) / पवन कुमार

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