हरिद्वार, 29 जुलाई (Udaipur Kiran) । हरिद्वार से सटी पौराणिक नगरी कनखल में स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित न होने के बावजूद श्रावण मास में प्रमुख तीर्थ बन जाता है। ऐसा इस मान्यता के कारण है कि भगवान भोलेनाथ सावन के महीने में कनखल के दक्षेश्वर मंदिर में निवास करते हैं। दक्षेश्वर नाम सती के पिता व भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है। दक्ष चौदह प्रजापतियों में से एक हैं जो निर्माण, रचना व प्रजनन के देव माने गए हैं और हिंदू पौराणिक कथाओं में जीवन के रक्षक भी हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती ने शिव को पिता द्वारा यज्ञ में न बुलाने से कुपित होकर यज्ञ अग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया था। जिससे क्रोधित भगवान शिव ने कनखल पहुंच कर अपने गण वीरभद्र को प्रकट किया और उन्होंने राजा दक्ष का शीश काट डाला। लेकिन जब ब्रह्मा आदि देवों ने शिव को राजा दक्ष का सृष्टि में महत्व समझाया तो भगवान शिव ने दक्ष के काटे गए शीश पर बकरे का शीष रोपण कर उन्हें पुनः जीवित कर दिया। जिसके बाद राजा दक्ष ने भगवान भोलेनाथ से अपने किये पर क्षमा मांगी और वचन लिया कि श्रावण माह में शिव अपनी ससुराल कनखल में ही रहेंगे।
मान्यता है कि भगवान शिव अपने ससुर को दिये इस वचन को निभाने हर सावन कनखल में विराजते हैं। जिसके कारण दक्षेश्वर महादेव मंदिर का महत्व सावन में विशेष रूप से बढ़ जाता है। इस कथा के कारण हरिद्वार कनखल ज्वालापुर में सावन में दामाद सत्कार के पर्व के आयोजन की परंपरा भी है। कनखल स्थित महानिर्वाणी अखाड़ा दक्षेश्वर महादेव मंदिर का प्रबंधन करता है।
अखाड़े के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज कहते हैं कि राजा दक्ष को जीवन प्रदान करने के बाद स्वयंभू शिवलिंग के रूप में भगवान शिव कनखल में प्रकट हुए और उनका यह शिवालय दक्षेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मान्यता है कि यह शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रथम स्वयंभू शिवलिंग है, जो भक्तों को अभय प्रदान करता है। सावन में कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जो भी भक्त भगवान शिव के शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करते हैं और बेलपत्र, पुष्प, तिल ,चावल, दूध, दही, शहद और पंचगव्य से पूजन अर्चन करते हैं, उनके सारे कष्ट दूर होते हैं। वे मोक्ष प्राप्त कर शिवलोक वासी हो जाते हैं।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला / वीरेन्द्र सिंह