नई दिल्ली, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) । करगिल में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारत की जीत के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर राजधानी दिल्ली स्थित डा. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में करगिल विजय दिवस समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डा. जीतेन्द्र सिंह, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर, करगिल युद्ध में हिस्सा लेने वाले सेवानिवृत्त कर्नल गिरीश कुमार मेदीरत्ता स्थित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
बच्चों के ब्रासबैंड द्वारा प्रस्तुत देशभक्ति की धुनों से आरम्भ हुए समारोह में केंद्रीय मंत्री डा. जितेन्द्र सिंह ने करगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों का श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत की प्रभुसत्ता को जब भी किसी ने चुनौती देने का साहस किया, उस समय पूरा राष्ट्र एक साथ मिलकर खड़ा हुआ है। ऐसा ही करगिल युद्ध के समय भी हुआ। वास्तव में करगिल युद्ध धर्मनिरपेक्षता के सर्वोच्च मूल्यों का प्रतीक है। भारतीय सशस्त्र सेना भी इसका एक उदाहरण है, जहां सभी मिलकर मातृभूमि के धर्म का निर्वहन करते हैं ।
डा. भीमराव आंबेडकर और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद करते हुए केंद्रीय मंत्री सिंह ने कहा कि देश के दोनों नेताओं को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हक़दार थे। विडम्बना यह है कि डा. आंबडेकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र का निर्माण 70 वर्ष बाद हो पाया, वहीं जम्मू को कश्मीर से जोड़ने वाली चेनानी-नाशरी सुरंग का नाम डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की याद में रखा गया। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में ऐसी घटनाएं हुई, जिससे भारत की विदेश नीति पर सवाल खड़े हुए, लेकिन कारगिल के युद्ध से मिले सबक को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेना को पूरी छूट दी और ऐसा पहली बार हुआ। इससे सेना के स्वभाव में परिवर्तन हुआ और अब वह खुल कर अपने दायित्वों का निर्वहन कर रही है।
समारोह में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि समन्वय की आवश्यकता हर जगह होती है और करगिल युद्ध में समन्वय के साथ एक तरह से पूरे देश ने हिस्सा लिया । तत्कालीन समय में पाकिस्तान की सेना पर पूरे भारत में गुस्से के माहौल था । कारण यह है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां सैनिक वीरता का भाव अपनी मां की लोरियों से सीखता है और देश का हर नागरिक अपने-अपने ढंग से देश सेवा करता है । ऐसा ही करगिल युद्ध के समय हुआ । जो जहां था, वह देश के लिए उठ खड़ा हुआ था और पूरा भारत एक साथ खड़ा था। भारत ऐसा देश है, जहां पर विदेशियों के हमले होते रहे लेकिन हर चुनौती से निपटने में भारत तब भी सक्षम था और आज भी है।
करगिल युद्ध में तोलोलिंग पर कब्ज़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले तोपखाने के नेतृत्व करने वाले सेवानिवृत्त कर्नल गिरीश कुमार मेदीरत्ता ने अपने रोमांचक अनुभव को साझा करते हुए कहा कि करगिल में भारत के कई सैनिक शहीद हुए, इसके बाद भी सीमाओं का सुरक्षा की गई । युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना श्रीनगर-करगिल मार्ग पर कब्ज़ा करना चाहती थी। पाकिस्तानी सेना से निपटने में थोड़ी सी देरी भी हुई, जिससे भारत का नुकसान भी हुआ लेकिन जब तोपखाने ने युद्ध में हिस्सा लिया, उसके बाद ही निर्णायक लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को पराजय का सामना करना पड़ा। यह पहली ऐसी लड़ई थी, जो तोपखाने और सैनिकों ने मिलकर जीती थी। आज 25 वर्ष बाद भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना के रूप में सभी के सामने है।
करगिल विजय दिवस समारोह में मंच का संचालन डा. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के निदेशक आकाश पाटिल ने किया, जबकि धन्यवाद प्रस्ताव के माध्यम से डा. शिव पाठक ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अथितियों को धन्यवाद दिया।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार / प्रभात मिश्रा