Chhattisgarh

महानदी में हुआ 690 अनजान मृतकों का हुआ तर्पण

महानदी के किनारे रूद्रेश्वर धाम में पूजन करते हुए लोग।
स्वर्गधाम सेवा समिति के पदाधिकारी 690 अनजान मृतकों का तर्पण कर सामूहिक पिंडदान करने जाते हुए।

धमतरी, 21 सितंबर (Udaipur Kiran News) । सर्व पितृमोक्ष अमावस्या पर रविवार 21 सितंबर को महानदी के किनारे रूद्रेश्वर धाम में स्वर्गधाम सेवा समिति ने विधि-विधान से 690 अनजान मृतकों का तर्पण कर सामूहिक पिंडदान किया। सुबह 10 बजे पूजा शुरू हुई। पंडित रामअवतार तिवारी ने हिन्दू रीति-रिवाज के तहत पूजा-अर्चना कराई। इसके बाद पिंडदान कर नदी में तर्पण कराया गया। दोपहर एक बजे पितृ तर्पण पर डा रोशन उपाध्याय ने व्याख्यान दिया।

मंच में चित्रकूट से पधारे संत जुगलकिशोर वैष्णव ने भी पितृ पक्ष पर अपने विचार रखें। समिति के अध्यक्ष एवंत गोलछा,महासचिव अशोक पवार ने कहा कि पितृ पक्ष के 16 दिन को पितरों के त्योहार के रूप में मनाना चाहिए। इस साल 690 अनजान लाशों का तर्पण व पिंडदान किया गया। हिन्दू धर्म में पितृ दूतों का विशेष महत्व है। इस अवसर पर धमतरी विधायक ओंकार साहू, महापौर रामू रोहरा, पूर्व विधायक रंजना साहू, डा सीएस चौबे, अर्जुनपुरी गोस्वामी, सियाराम साहू, डोमर सिंह दादरा, डा जेएल देवांगन, दानीराम साहू, एनआर यादव, गौकरण सिन्हा, चंपालाल साहू, विनीता पवार, वंदना पवार, उषा श्रीवास्तव, जगजीवन सिंह सिद्धू, तीरथराज फूटान, अमनगिरी गोस्वामी, किशोर, कैलाश सोनी, विशाल गौरी, विकास शर्मा, सुनीता पवार, डा रविकिरण शिंदे, डा राकेश सोनी आदि उपस्थित थे।

जीवन की पूर्णता मृत्यु के साथ ही होती है पूरी: डा रोशन उपाध्याय

पितृ तर्पण पर व्याख्यान देते हुए डा रोशन उपाध्याय ने कहा कि जीवन की पूर्णता मृत्यु के साथ ही पूरी होती है। प्रारब्ध सुख-दुख भोगने के बाद मन और आत्मा शरीर छोड़ देती है इसे ही मृत्यु कहते हैं। मृत्यु के बाद 13 दिनों तक आत्मा उसी घर में अपने परिजनों के बीच निवास करती हैं। दशगात्र के दिन आत्मा को अधिकाय (दूसरा) शरीर की प्राप्ति होती है, इसे दशगात्र कहते हैं। 13 वें दिन आत्मा घर को छोडक़र यमलोक के लिए निकल जाती है। 348 दिन में आत्मा अधिकाय शरीर को धारण कर यमलोक पहुंचती है। यह समय पृथ्वी में बरसी का समय होता है। डा उपाध्याय ने कहा कि सालभर में 15 दिन के लिए पितर मृत्युलोक में आते हैं। मृत्यु लोक का 15 दिन पितरों के लिए 60 मिनट (एक घंटे) के बराबर होता है। प्रत्येक दिन पितरों के लिए चार मिनट के बराबर होता है। इस तरह 15 दिन में पितर सिर्फ 60 मिनट यानी एक घंटे के लिए पृथ्वी पर आते हैं। पितृ पक्ष शुरू होते ही भगवान विष्णु पितृलोक के देवता अर्यमा के रूप में वंशजों के घर पहुंचते हैं। शास्त्र संतान को पुत्र होने का अधिकार तभी प्रदान करता है जब वह तीन कर्तव्यों को पूरा करे। पहला जीते जी माता-पिता की आज्ञा का पालन करना। दूसरा माता-पिता का क्षय (मृत्यु) होने पर शास्त्रोक्त विधि से दशगात्र, 13वीं, बरसी की क्रिया को करना। तीसरा एक वर्ष के पश्चात गयाजी आदि तीर्थों में जाकर पिंडदान व तर्पण करना। आजकल कुछ लोग सनातन धर्म में पितरों के लेकर बताई गई बातों को आडम्बर, फिजूलखर्ची बताकर लोगों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि शास्त्रों में दशगात्र व तर्पण की पूरी विधि बताई गई है। शास्त्रों में श्राद्ध के 96 प्रकार बताए गए हैं। आज हम यहां श्राद्ध के पांच प्रमुख विधियों के बारे में जानकारी देंगे। पहला नित्य श्राद्ध, दूसरा नांदीमुख श्राद्ध, तीसरा तीर्थादि श्राद्ध, चौथा एकोदिश और पांचवा पार्वण श्राद्ध।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

Most Popular

To Top