

चार दशक बाद गेट का ताला खुला,झाड़ झंखाड़ और मलबे की सफाई शुरू,मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद पहल कर स्वामित्व विवाद का हल निकलवाया
वाराणसी,22 जुलाई (Udaipur Kiran) । वाराणसी जगतगंज में लगभग 42 साल चले गुरुद्वारा और हनुमान मंदिर का विवाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर सुलझ गया है। चालीस साल बाद परिसर के मुख्य द्वार का सील ताला खुलते ही सिख समाज के साथ स्थानीय लोगों में भी खुशी की लहर दौड़ गई। अब परिसर में गुरूवाणी और सत् श्री अकाल’ और ‘महावीर हनुमान की जय’ की गूंज एक साथ सुनाई देगी। गुरुद्वारे का विवाद समाप्त होने के बाद ताले की चाबी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को दे दी गई। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सरदार करन सिंह सभरवाल ने पत्रकारों को बताया कि गुरु तेग बहादुर सिंह की तपस्थली पर शीघ्र ही गुरुद्वारे का निर्माण होगा। उन्होंने बताया कि प्रथम पक्ष श्री हनुमान मंदिर व द्वितीय पक्ष गुरुद्वारा के बीच स्वामित्व, कब्जे व अपने अधिकारों को लेकर 40 वर्षो से विवाद चल रहा था। तीन हजार से 3500 वर्गफीट भूमि का मामला कोर्ट में भी चल रहा था। इसके समाधान के लिए कोर्ट के बाहर भी प्रयास चल रहा था। इसमें अजीत सिंह सभरवाल अब स्मृतिशेष के अथक प्रयास और स्वतंत्रता सेनानी शहीद बाबू जगत सिंह के वंशज प्रदीप नारायण सिंह की मध्यस्थता ने भी बड़ी भूमिका निभाई। फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहल पर श्री बड़े हनुमान मंदिर प्रबंध समिति के व्यवस्थापक श्याम नारायण पांडेय और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मध्य आपसी सौहार्द कायम रखने के लिए सुलहनामा पर प्रदीप नारायण सिंह के जगतगंज कोठी में कई चक्र बातचीत चली। मुख्यमंत्री के पहल पर दोनों पक्षों में सहमति बनी कि एक ओर भव्य गुरुद्वारा होगा तो दूसरी ओर बड़े हनुमान का मंदिर।
दोनों पक्षों में सहमति बनने के बाद प्रदीप नारायण सिंह ने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला पूरे विश्व में मिसाल कायम करेगा। इसे शांति और अमन के प्रतीक के रूप में देखा जाएगा। श्री बड़े हनुमान मंदिर प्रबंध समिति के व्यवस्थापक श्याम नारायण पांडेय ने भी ‘ (Udaipur Kiran) ’ से बातचीत में मामला सुलझने पर खुशी जताई । उन्होंने कहा कि बनारस गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल है।
—यहां गुरू तेग बहादुर दो सौ साल पहले आए थे
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अनुसार सिख पंथ के नौवें गुरु तेग बहादुर करीब दो सौ साल पहले जब काशी आए थे। तब वह नीचीबाग (वर्तमान में गुरुद्वारा) में रुके थे। वह अपने अनुयायियों से मिलने जगतगंज भी आते थे। ये उनकी चरण स्पर्श भूमि है। कालांतर में यहां गुरुद्वारा भी बना।
—————
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
