
धर्मशाला, 21 नवंबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे 16वें इंडियन टूरिज़्म एंड हॉस्पिटैलिटी कांग्रेस (आईटीएचसी) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुक्रवार को आगाज़ हुआ। सम्मलेन के उद्घाटन सत्र में भारत और विश्व के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों एवं विशेषज्ञों ने सतत पर्यटन, जलवायु परिवर्तन तथा वेलनेस आधारित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए। सम्मेलन का मुख्य विषय “सस्टेनेबल टूरिज़्म एंड वेलनेस : ए पाथ टू ए ग्रीनर फ्यूचर” रहा।
सम्मेलन की शुरुआत आईटीएचसी के वरिष्ठ सदस्य संदीप कुलश्रेष्ठ ने की। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का विषय वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप है और न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक सस्टेनेबल पर्यटन उद्योग निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
आईटीएचसी के कोषाध्यक्ष प्रो. प्रशांत गौतम ने बताया कि भारत के 130 से अधिक संस्थान के सदस्य हैं और इनसे जुड़े सदस्यों की संख्या 700 से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि यह संगठन देश में पर्यटन शिक्षा और शोध को एक नई दिशा दे रहा है। ब्रिटेन के सदरलैंड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ व्याख्याता ब्लर्टन ह्यसेनी ने कहा कि सततता को व्यवहार में लाने के लिए हमें एक-दूसरे की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना होगा। भारत यात्रा ने उन्हें भारतीय आतिथ्य की अद्भुत संभावनाओं का अनुभव कराया। सेंटरल यूनिवर्सिटी ऑफ हिमाचल प्रदेश और सँडरलैंड विश्वविद्यालय के बीच एमओयू हस्ताक्षरित करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में पारंपरिक ज्ञान का आदान–प्रदान और साझेदारी बेहद आवश्यक है।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के शिक्षाविद डॉ. सुनील काबिया ने कहा कि छात्र हमारे ग्रह के वास्तविक संरक्षक हैं और पर्यटन की दर्शनशास्त्र को जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढालना समय की मांग है। उन्होंने चेताया कि पर्यटन एक “दोहरी धार वाली तलवार” है—जिससे रोजगार तो मिलता है, परंतु पर्यावरणीय क्षरण भी बढ़ता है, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में कचरा फैलने की समस्या चिंताजनक है। उन्होंने सभी से पर्यावरण–अनुकूल यात्रा की प्रतिज्ञा लेने, जिम्मेदार नवाचार करने और नवीकरण की परंपरा शुरू करने का आह्वान किया। विश्वकर्मा स्किल विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश कुमार ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं में पर्यावरण संरक्षण गहराई से निहित है। गोवर्धन परिक्रमा जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि आध्यात्मिकता और पर्यावरण–अनुकूल पर्यटन साथ-साथ चल सकते हैं। उन्होंने अनुभव–आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने पर बल दिया।
धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां मनुष्य द्वारा पैदा की गई हैं और हिमाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल ढांचा विकसित करना समय की आवश्यकता है।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हिमाचल प्रदेश के कुलपति और आईटीएचसी अध्यक्ष प्रो. सतप्रकाश बंसल ने कहा कि देश के अधिकांश प्रमुख पर्यटन स्थल अपनी वहन क्षमता से अधिक भार झेल रहे हैं। ऐसे में ऑफबीट गंतव्यों का विकास आवश्यक है, ताकि स्थानीय संस्कृति, व्यंजन, परंपरा और आतिथ्य को नए अवसर मिले।
(Udaipur Kiran) / सतेंद्र धलारिया