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राष्ट्रपति को विधेयक भेजे जाने के मामले में नौवें दिन की सुनवाई पूरी

Supreme Court

नई दिल्ली, 10 सितंबर (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर आज नौवें दिन की सुनवाई पूरी कर ली। संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई 11 सितंबर को करेगी।

आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पड़ोसी देश नेपाल की खस्ता हालात का हवाला दिया। जस्टिस बिक्रम नाथ ने कहा कि देश पिछले 75 सालों से लोकतंत्र और संविधान के जरिए ही आगे बढ़ रहा है। भले ही इस दरम्यान कितने विधेयकों को मंजूरी मिली हो या नामंजूर किया गया हो। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व है। देखिए हमारे पड़ोसी देश में क्या हो रहा है। नेपाल के हालात हम देख ही रहे हैं। जस्टिस विक्रम नाथ ने चीफ जस्टिस की बातों पर सहमति जताते हुए कहा कि बांग्लादेश में भी हालात ऐसे ही खराब है।

आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दिए गए इस आंकड़े पर एतराज जताया कि 1970 के बाद से अब तक केवल 20 विधेयक ऐसे आये हैं जिसे राज्यपालों की ओर से रोका गया। कोर्ट ने कहा कि हमने पहले ही दूसरे पक्षकार को कोई भी आंकड़ा देने से मना किया है। दरअसल केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1970 के बाद से अब तक कुल 17150 विधेयकों में से केवल 20 विधेयक ही राज्यपालों ने रोके। सुप्रीम कोर्ट ने इसी आंकड़े पर एतराज जताया। मेहता ने कहा कि इन 20 विधेयकों में से सात तमिलनाडु के राज्यपाल ने रोका। मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार राज्यपालों की ओर से विधेयकों को लंबित रखने की पक्षधर नहीं है। लेकिन किसी भी तरह का टाइमलाइन तय करना इसका समाधान नहीं है।

बता दें कि 9 सितंबर को सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्यपाल बस नाम मात्र के प्रमुख होते हैं और वो सिर्फ केंद्र और राज्यों के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं। कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं चलायी जा सकती क्योंकि वे कार्यपालिका का कोई कार्य नहीं करते हैं। सुब्रमण्यम ने कहा था कि मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि है। उन्होंने कहा था कि संविधान के तहत राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ समानांतर प्रशासन का प्रावधान नहीं है।

सुनवाई के दौरान केरल सरकार की ओर से कहा गया था कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक की मंजूरी देने से इनकार करते हैं तो राज्य मंत्रिपरिषद उन्हें उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य कर सकती है। केरल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा था कि जब सरकार और राज्यपाल के बीच चर्चा के बाद भी कोई सहमति नहीं बनती है और राज्यपाल किसी विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देना चाहते हैं तो मंत्रिपरिषद अनुच्छेद 163 के तहत उन हें तुरंत मंजूरी देने का सलाह दे सकती है।

बता दें कि संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। बता दें कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने का अधिकार है।

(Udaipur Kiran) /संजय

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(Udaipur Kiran) / प्रभात मिश्रा

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