कानपुर, 15 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । राई-सरसों की खेती कम लागत में अधिक लाभ होता है। सरसों की खेती किसानों के लिए सबसे अधिक लाभकारी है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के तिलहन अनुभाग में विकसित की गई वरुणा प्रजाति सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए संस्तुति है। साथ ही साथ बदलती हुई जलवायु में तापक्रम के प्रति सहिष्णु हैं। अन्य प्रजातियों की तुलना में रोग व्याधियों कम लगती हैं। यह जानकारी मंगलवार को तिलहन अनुभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर महक सिंह ने दी।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय कृषि अर्थव्यवस्था में तिलहन फसलों का द्वितीय स्थान है। वैश्विक स्तर पर कनाडा और चीन के बाद भारत तीसरा मुख्य सरसों उत्पादक एवं सातवा सरसों के तेल का निर्यातक देश है। उत्तर प्रदेश में राई-सरसों का कुल क्षेत्रफल लगभग 7.53 लाख हेक्टेयर तथा कुल उत्पादन लगभग 11.53 लाख मैट्रिक टन है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की प्रमुख प्रजातियां जैसे वरुणा, वैभव, रोहिणी, माया, कांति, वरदान, आशीर्वाद एवं बसंती हैं। जबकि पीली सरसों में पीतांबरी प्रमुख प्रजाति है। विश्वविद्यालय द्वारा राई की आजाद महक एवं सरसों की आजाद चेतना, गोवर्धन जैसी नवीन प्रजातियों का विकास किया गया है। उन्होंने बताया कि वरुणा तथा वैभव जैसी प्रजातियां अर्ध शुष्क दशा में बुवाई हेतु उत्तम होती हैं।
सरसों की बुआई सबसे उत्तम माह अक्टूबर
उन्होंने कहा कि बुवाई के लिए अक्टूबर माह का समय उचित रहता है तथा विलंब की दशा में एक नवंबर से 25 नवंबर उत्तम रहता हैं। डॉ सिंह ने बताया कि वैसे तो विश्वविद्यालय द्वारा विकसित राई सरसों की प्रजातियां पूरे देश में उगाई जा रही हैं। वरुणा प्रजाति सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए संस्तुति है। साथ ही साथ बदलती हुई जलवायु में तापक्रम के प्रति सहिष्णु हैं। अन्य प्रजातियों की तुलना में रोग व्याधियों कम लगती हैं। उन्होंने बताया कि वरुणा प्रजाति का दाना मोटा एवं तेल की मात्रा अधिक 39 से 41.8% होती है। उन्होंने बताया कि सरसों के तेल का मानव स्वास्थ्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाता है।
सरसों का तेल स्वास्थ्य के लिए टानिक
प्रोफेसर महक ने बताया कि सरसों का तेल स्वास्थ्य टॉनिक के रूप में, रक्त निर्माण में योगदान, स्वस्थ हृदय, मधुमेह पर नियंत्रण, कैंसर प्रतियोगी, जीवाणु फफूंदी प्रतिरोधी, ठंड और खांसी निवारक, जोड़ों के दर्द और गठिया उपचार तथा अस्थमा निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि सरसों से निकलने वाले अपशिष्ट ठोस पदार्थ को खली कहते हैं खली में 38 से 40% प्रोटीन पाया जाता है जो कि पशु आहार में प्रयोग करते हैं जिससे कि पशुओं को लाभ होता है।
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(Udaipur Kiran) / रामबहादुर पाल