
वाराणसी, 19 नवम्बर (Udaipur Kiran) । रामजन्मभूमि को लेकर अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएस सीआईआर एफ) की हालिया रिपोर्ट ने संत समाज को उद्वेलित कर दिया है। अखिल भारतीय संत समिति ने बुधवार को इस रिपोर्ट की कड़ी निंदा करते हुए इसे भारत की सम्प्रभुता और सांस्कृतिक विरासत पर सीधा हमला करार दिया। समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंदानन्द सरस्वती ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की समावेशी अस्मिता का “घोर अपमान” है और देश को अस्थिर दिखाने की एक साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है।
स्वामी जीतेंदानन्द ने आरोप लगाया कि 22 जनवरी 2024 को श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से ही कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत में साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूएस सीआईआर एफ की रिपोर्ट उसी श्रृंखला का नया प्रयास है, जो यह दर्शाती है कि “कुछ विदेशी ताकतें अब खुल कर भारत के विरुद्ध खड़ी हो गई हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत में अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार पर टिप्पणी करने से पहले अमेरिका को अपने इतिहास की ओर देखना चाहिए। “बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या में आई भारी गिरावट पर कभी कोई रिपोर्ट क्यों नहीं?” उन्होंने सवाल उठाया। आरोप लगाया कि पश्चिमी संस्थान दुनिया भर में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की अनदेखी करते रहे हैं, जबकि भारत को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। इसे उन्होंने “सनातन धर्म और भारतीयता के विरुद्ध छद्म युद्ध” बताया।
यूएस सीआईआर एफ की रिपोर्ट पर प्रश्न उठाते हुए स्वामी जीतेंदानन्द ने कहा कि इसमें तथ्य छुपाए गए और झूठे आरोप लगाए गए। “भारत में अल्पसंख्यकों को संविधान के तहत वह अधिकार प्राप्त हैं, जो कई बार बहुसंख्यकों को भी उपलब्ध नहीं,” उन्होंने कहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि राममंदिर किसी सरकार की कृपा से नहीं, बल्कि पांच शताब्दियों के संघर्ष और सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय के आधार पर बना है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि बाबरी मस्जिद पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे ने 2020 में प्रधानमंत्री को रामायण भेंट कर फैसले का सम्मान किया था, जो भारत की सामंजस्यपरक संस्कृति का प्रमाण है। उन्होंने विदेशी एजेंसियों पर भारत में अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब भारतीय संस्थाएं और संत समाज मिलकर इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करेंगे। 9–10 दिसम्बर को होने वाली राष्ट्रीय बैठक में इस विषय पर विस्तृत विमर्श कर भावी रणनीति तय की जाएगी।
संत समिति ने अमेरिकी संस्थाओं को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा। “यदि यह आचरण जारी रहा, तो हमें भी अमेरिका और उसकी एजेंसियों के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।” समिति ने कहा कि भारत शांतिप्रिय राष्ट्र है, लेकिन राष्ट्रहित के प्रश्न पर पीछे हटना उसकी प्रकृति नहीं।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी