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रामराज्य सुशासन का प्रतीकः प्रो. अनुरागरत्न

एलएलबी, बीएससी-एमएससी एजी सहित अन्य विषयों की परीक्षा 18 जुलाई से

– रामकथा मित्रता भाव का द्योतकः प्रो. चन्द्र मोहन

– अविवि में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन तकनीकी सत्र का आयोजन

अयोध्या, 16 जुलाई (Udaipur Kiran) । डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद सभागार में बीएन.के.बीपी.जी. कॉलेज, अम्बेडकर नगर और सावित्री बाई फुले अकादमिक शोध एवं सामाजिक विकास संस्थान, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘मर्यादा पुरुषोत्तम रामः एक वैश्विक आदर्श‘ विषयक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को प्रथम तकनीकी सत्र में अध्यक्षता गनपत सहाय पी.जी. कॉलेज के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अनुरागरत्न, मुख्य वक्ता कालीचरण पी. जी. कॉलेज, लखनऊ के प्राचार्य प्रो. चन्द्र मोहन उपाध्याय, विशिष्ट वक्ता उड़ीसा से पधारे प्रो. सुदीप्त रहे। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए गनपत सहाय पी. जी. कॉलेज के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अनुरागरत्न ने कहा कि रामराज्य सुशासन का प्रतीक है। सुशासन शासक और जनता के बीच अच्छे सम्बन्धों का वाहक है। दुनिया नेतृत्व के संकट से जूझ रही है, ऐसे संकट के समय में राम दुनिया को रास्ता दिखा सकते हैं।

मुख्य वक्ता कालीचरण पी. जी. कॉलेज, लखनऊ के प्राचार्य प्रो. चन्द्र मोहन उपाध्याय ने कहा कि रामकथा कूटनीतिक रूप से मित्रताभाव का द्योतक है। दुनिया की कोई कूटनीति बिना मित्रताभाव के चल नहीं सकती। आदर्श राजनय के सूत्र राजनय के तीन पहलू हैं- परराष्ट्र नीति (विदेश नीति), कूटनीति और सार्वजनिक कूटनीति (पब्लिक डिप्लोमेसी)। विदेश नीति किसी देश की स्पष्ट और व्यक्त नीति होती है, जिसमें उसके हित और दृष्टिकोण शामिल होते हैं। कूटनीति विदेश नीति के उद्देश्यों को साधने की कुशलता है, जिसमें रणनीति, चतुराई और संवाद कौशल शामिल होते हैं। सार्वजनिक कूटनीति किसी देश द्वारा अन्य देशों की जनता, वहां के विभिन्न समूहों को सीधे संबोधित करने, जोड़ने का काम है। तीनों के गुर रामायण में मिलते हैं। वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरित मानस, दोनों में, हनुमान का अपने राजा सुग्रीव के कहने पर राम लक्ष्मण के पास जाना और उनका परिचय प्राप्त करना राजनय का हिस्सा है।

विशिष्ट वक्ता उड़ीसा से पधारे प्रो. सुदीप्त ने कहा कि वस्तुतः रामराज्य की अवधारणा ऐसे सुशासन की कल्पना है, जिसमें सबको योग्य बनने और योग्यता के अनुसार सब प्राप्त करने का अधिकार है। इसमें सर्वत्र पारदर्शिता है। किंतु समाज के अंतिम व्यक्ति के अभ्युत्थान की चिंता प्रमुख है। अब रामराज्य की इस कल्पना में कुछ चीजें महत्वपूर्ण होकर उभरती हैं। रामराज्य में शासन कैसा होगा? उसकी चारित्रिक विशिष्टताएं क्या होंगी? सबको न्याय प्राप्त हो सके, इसकी प्रणाली क्या होगी? समाज में सबकी समानता किस प्रकार से निर्मित होगी? सामाजिक जीवन के अंतिम स्थान पर खड़े व्यक्ति की आवाज, उसकी इच्छा, आकांक्षा किस प्रकार अभिव्यक्त होगी और सर्वोच्च तक सुनी जाएगी।

संगोष्ठी के द्वितीय तकनीकी सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में राजस्थान के बी. एस. एन. कॉलेज के निदेशक डॉ. बाबूलाल देवंदा ने कहा कि वर्तमान जीवन में भावी पीढ़ी को रामचरित्र हमेशा पथ-प्रदर्शित करेगा। राजस्थान से मुख्य वक्ता प्रो. सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि राम ने अपने वनवास के समय सामाजिक-समरसता का नया आयाम गढ़ा। वनवास ने रामराज्य की भूमिका निर्मित की। रामराज्य का आदर्श अपनाकर ही रामराज्य की कल्पना पूर्ण की जा सकती है।

विशिष्ट वक्ता डॉ. सीताराम चैधरी ने कहा कि रामायण काल तकनीक के क्षेत्र में हम जिस मुकाम पर थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. कि लंकापति रावण के पास मिसाइल तकनीक जैसा ही आविष्कार उस समय भी मौजूद था. लंकापति रावण ने अपने इस हथियार से हर युद्ध जीता ,रामायण काल में लड़ाकू विमान थे. इसका सबूत रावण के पास मौजूद विष्पुक विमान से लगाया जा सकता है. ये ही नहीं रावण के पास लड़ाकू विमानों को नष्ट करने के लिए एक विशाल दर्पण यंत्र था. इससे प्रकाश पुंज, उड़ते वायुयान पर छोड़ने से यान आकाश में ही नष्ट हो जाते थे। दूसरे विशिष्ट वक्ता प्रो. बाबूलाल देवंदा ने कहा कि भगवान राम के बनाए संविधान से पूरी सृष्टि चल रही है। सामाजिक-राजनीतिक जीवन के सभी पहलुओं में राम दृश्यमान होंगे।

संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र में श्रीलंका से काली सिल्वम, राजस्थान से मीना कँवल, लखनऊ से अर्चना, सीमा मौर्या समेत प्रथम और द्वितीय तकनीकी सत्र में देश और विदेश से लगभग 50 से ज्यादा शोध-पत्र का वाचन ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से किया गया। सर्वश्रेष्ठ शोध-पत्र के प्रथम पुरस्कार अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या की शोध-छात्रा यामा चंदवाल को दिया गया। समापन सत्र में कार्यक्रम के संयोजक प्रो. शुचिता पांडेय और डॉ. कमल कुमार सैनी ने कहा कि राम का चरित्र लोक मानस का आदर्श चरित्र है। वे हमारे दैनिक जीवन के प्रेरणा-स्रोत हैं। राम ने अपने समय के अनेक विरोधी संस्कृतियों, साधनाओं, जातियों, आचार-निष्ठाओं और विचार-पद्धतियों को आत्मसात् करते हुए उनका समन्वय करने का साहस दिया। साहस के लिए शारीरिक और भौतिक बलिष्ठता की आवश्यकता नहीं पड़ती, हृदय में पवित्रता और चरित्र में दृढ़ता की आवश्यकता पड़ती है। साहस का यह गुण राम में पूर्ण रूप से था।

संयोजन समिति ने सफल आयोजन के लिए सभी सहयोगियों के साथ विशेष रूप से सरदार पटेल राष्ट्रीय एकात्मकता केंद्र के सहायक आचार्य डॉ. शिवांश कुमार और उनकी टीम का विशेष आभार व्यक्त किया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस प्रो. परेश पांडेय, प्रो. वन्दना जायसवाल, प्रो. सत्य प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. सिद्धार्थ पांडेय, प्रो. जयमंगल पांडेय, डॉ. मनोज श्रीवास्तव, डॉ. विवेक त्रिपाठी, डॉ. जनमेजय तिवारी, डॉ. रवि चैरसिया, डॉ. कमल कुमार त्रिपाठी, डॉ. शिवांश कुमार त्रिपाठी समेत बड़ी संख्या में शिक्षक और शोधार्थी उपस्थित रहे।

(Udaipur Kiran) पाण्डेय

(Udaipur Kiran) / पवन पाण्डेय / Siyaram Pandey

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