Uttar Pradesh

दिल्ली-हावड़ा जोड़ने में नैनी पुल का रहा इतिहास

पुल

प्रयागराज, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय उपमहाद्वीप पर रेलवे आगमन के तुरंत बाद कोलकाता को दिल्ली से जोड़ने के लिए ईस्ट इंडियन रेलवे के प्रयास में इलाहाबाद में यमुना पर बना पुल एक महत्वपूर्ण कड़ी था। नैनी और इलाहाबाद के बीच इसका स्थान 1855 में ही तय हो गया था। विद्रोह के बाद 1859 में वास्तविक कार्य शुरू हुआ और दिल्ली-हावड़ा को जोड़ने के लिए सिबली, मुख्य अभियंता के मार्गदर्शन में 15 अगस्त 1865 को पुल खोला गया।

वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी अमित मालवीय ने शनिवार को जानकारी देते हुए बताया कि इस पुल की लम्बाई 3,150 फीट (960.12 मीटर) है। इसमें 200 फीट के 14 और 60 फीट के दो स्पैन हैं। पुल के ऊपर रेलवे लाइन है और नीचे सड़क है। इसे इंजीनियर रेन्डेल ने डिजाइन किया था। नीचे की नींव की गहराई 42 फीट तक है और निचले जलस्तर से गर्डर के नीचे की ऊंचाई 58.75 फीट है। गर्डर का वजन 4,300 टन है। अनुमान है कि इसमें करीब 2.5 मिलियन क्यूबिक फीट चिनाई और ईंट का काम किया गया था। उस समय निर्माण की कुल लागत 44,46,300 रुपये थी, जिसमें से 14,63,300 रुपये गर्डर की लागत थी। इस पुल की एक अनूठी विशेषता इसका 13वां स्तम्भ है, जिसका आकार ’हाथी के पैर’ के आकार का है।

पीआरओ ने बताया कि डीएफसीसीआईएल द्वारा यमुना नदी (प्रयागराज) पर भी एक उल्लेखनीय स्टील पुल बनाया गया है। यमुना नदी पर और प्रयागराज में सबसे लम्बा पुल (1034 मीटर) डीएफसीसीआईएल द्वारा बनाया गया था। यह ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का सबसे लम्बा पुल है और इसमें 17 स्पैन, 34 गर्डर हैं, डबल लाइन ट्रैक बनाया गया था। यह भारत के पूर्वी हिस्से को उत्तरी हिस्से से जोड़ने के लिए बनाया गया है ताकि भारी माल, खनिजों की आवाजाही हो सके और सुरक्षित, सुचारू ट्रेन संचालन हो सके।

उन्होंने बताया कि यह सब 2016 में 1034 मीटर लम्बे दोतरफा पुल के निर्माण के लिए सर्वेक्षण के साथ शुरू हुआ था और कॉफ़रडैम विधि और कैसन तकनीक (45-50 मीटर की गहराई के साथ 9 मीटर व्यास वाले 18 कुओं की नींव) की मदद से बनाया गया था। साथ ही, इसके खंभों की ऊंचाई 12.4 मीटर से लेकर 16.4 मीटर तक थी। 9520 मीट्रिक टन वजन वाले सभी 34 गर्डर स्वदेशी हैं और भारत में बने हैं, जिससे यह संरचना का एक उल्लेखनीय टुकड़ा बन गया है। यह एक भविष्योन्मुखी पुल है जिसे नदियों को जोड़ने वाले कार्गो मूवमेंट के लिए सतह और जलमार्ग परिवहन की सम्भावना को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जिससे भारत एक लॉजिस्टिक हब बन जाएगा और आत्मनिर्भर भारत बनेगा। इसके इष्टतम उपयोग से लॉजिस्टिक लागत को कम करने का उद्देश्य प्रभावी होगा।

(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र / राजेश

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