Madhya Pradesh

38 वर्ष की नौकरी को अवैध ठहरने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य शासन को जारी किया नोटिस

लगातार अनुपस्थित रहने के कारण एमपी/एमएलए कोर्ट ने 26 अगस्त को अभिषेक बनर्जी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। यह याचिका 5 नवंबर को रजिस्टर्ड हुई और 10 नवंबर को प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए गए। सोमवार, 12 नवंबर को जस्टिस प्रमोद अग्रवाल की सिंगल बेंच के समक्ष सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है

जबलपुर, 14 नवंबर (Udaipur Kiran) । 38 वर्षों की लंबी शासकीय सेवा के दौरान राज्य शासन ने कभी भी राकेश कुमार चौरसिया की नियुक्ति को अवैध नहीं माना, लेकिन अब उसी नियुक्ति को वैध मानने से इनकार किया जा रहा है। एमपी हाईकोर्ट की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के इस निर्णय पर नाराजगी व्यक्त की और नोटिस जारी कर पूछा कि जब सरकार ने लगातार 38 वर्ष तक सेवा ली, तो अब नियुक्ति को अवैध कैसे ठहराया जा सकता है? मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह तय की गई है।

मध्य प्रदेश में ऐसे सैकड़ों कर्मचारी हैं जो पिछले 25 वर्ष या उससे अधिक समय से तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर कार्यरत हैं,लेकिन अभी तक उनका नियमितीकरण नहीं किया गया है। कई बार आंदोलन हुए, राज्य शासन ने कई बार नियमितीकरण नीति बनाई,लेकिन उन कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिला,जिनकी नियुक्ति पदों के विरुद्ध नहीं की गई थी। खास बात यह है कि राज्य सरकार ने पहले इन्हें विनियमितीकरण का लाभ प्रदान किया था,लेकिन अब उन्हीं कर्मचारियों से कहा जा रहा है कि उनकी नियुक्ति अवैध है।

उप संचालक उद्यान, जिला जबलपुर कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी राकेश कुमार चौरसिया द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका में यह उल्लेख किया गया कि पूर्व में हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य शासन को उनके नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए थे। इस आदेश के पालन में राज्य शासन ने अपने निर्णय में कहा कि 38 वर्ष पूर्व की गई नियुक्ति अवैध थी क्योंकि उस समय संबंधित पद स्वीकृत नहीं था।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि वे कर्मचारी जो 10 वर्ष या उससे अधिक समय से कार्यरत हैं, उनकी नियुक्ति चाहे अनियमित हो या अवैध उनके प्रकरणों की समीक्षा कर नियमितीकरण के लिए स्थाई समिति गठित की जानी आवश्यक है। इस संबंध में मुख्य सचिव को भी निर्देश जारी किए गए हैं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य शासन एक आदर्श नियोक्ता है, लेकिन लंबे समय तक किसी कर्मचारी से निरंतर सेवा लेना और फिर भी उसे नियमित कर्मचारी का लाभ न देना अनुचित है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य शासन द्वारा अब तक पूर्व आदेशों पर आवश्यक कार्यवाही नहीं की गई है, जो गंभीर लापरवाही दर्शाती है।

जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की बेंच ने राकेश चौरसिया के मामले में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा कि जब 25मार्च 2025 को हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को इस संबंध में कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे, तो अब तक उस पर क्या प्रगति हुई है? कोर्ट ने राज्य शासन को इस संबंध में स्पष्ट जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता राकेश चौरसिया की पैरवी अधिवक्ता पंकज दुबे और अक्षय खंडेलवाल कर रहे हैं।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक