Madhya Pradesh

सहजयोग का प्रचार-प्रसार करने भारत भ्रमण पर निकले डॉ.चव्हाण ने ली उज्जैन में कार्यशाला

उज्जैन, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । पेशे से फिजियोथेरेपिस्ट पूणे के डॉ.विश्वजीत चव्हाण सहजयोग के प्रचार-प्रसार के लिए भारत भ्रमण कर रहे हैं। वे नि:शुल्क कार्यशाला लेकर सहजयोगियों को उनके आध्यात्मिक उत्थान में आनेवाली बाधाओं को दूर करने के उपाय बताते हैं। उनके अनुसार सहजयोग में हम स्वयं के डॉक्टर हैं। अपने उत्थान के माध्यम से हम अपने शरीर के भीतर के सभी रोगों का उपचार स्वयं कर सकते हैं। रविवार को डॉ.चव्हाण ने सेठी नगर स्थित कन्हैया परिसर में कार्यशाला को संबोधित किया। प्रात: 9 बजे से प्रारंभ कार्यशाला शाम 5 बजे तक चली। डॉ.चव्हाण ने प्रोजक्टर की सहायता से सहजयोग प्रणेता परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी के द्वारा दिए गए प्रवचनों को दिखाया ओर प्रवचनों में कही गई बातों को विस्तार से समझाया। इस कार्यशाला में उज्जैन नगर,जिला के अलावा समीपस्थ क्षेत्रों के सहजयोगी भाई-बहन उपस्थित हुए थे।

डॉ.चव्हाण ने बताया कि चिकित्सा विज्ञान भी वर्षों पूर्व शास्त्रों में उल्लेखित तथ्य मान चुका है कि हमारे शरीर में तीन नाड़‍ियां होती है। बायीं ओर चंद्र और दाहिनी ओर सूर्य नाड़ी रहती है। मध्य में सुषुम्ना नाड़ी होती है। हमारे शरीर के सभी अंग इन्हीं नाड़ि‍यों पर निर्भर है तथा सात चक्रों के माध्यम से शरीर का संचालन करते हैं। इन्ही चक्रों से विज्ञान की भाषा में हमारे बॉडी आर्गन संचालित होते हैं। जब किसी चक्र में खराबी आती है तो हमारे संबंधित आर्गन उसका संकेत देते हैं। हम चिकित्सक के पास जाते हैं तो वे संबंधित बीमारी का उपचार करते हैं। सहजयोग में हम संबंधित चक्र का वायब्रेशन के माध्यम से उपचार करते हैं। जोकि हमारे दोनों हाथों से निकलनेवाली ठण्डी लहरियां हैं। जिसे शंकराचार्य ने सलीलम-सलीलम कहा था।

उन्होंने बताया कि जब चक्र ठीक हो जाता है तो बीमारी स्वमेव समाप्त हो जाती है। ये जो वायब्रेशन हैं, इनको प्राप्त करने के लिए हमें अपना उत्थान करना होता है। सहजयोग के द्वारा माताजी निर्मलादेवी ने इसकी सरल पद्धति प्रदान की है। हमें केवल अपने लिए रोजाना कुछ समय निकालना होता है। कुछ भी पैसा खर्च नहीं होता है। उन्होने बताया कि आज दुनिया के 180 से अधिक देशों में सहजयोग के माध्यम से करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं। यदि एक बार व्यक्ति सहजयोग केंद्र पहुंचकर आत्मसाक्षात्कारी हो जाता है,तो वह कुण्डलिनी जागरण का एवं चक्रों का स्व-अनुभव करता है। इसके बाद उसे नियमित अभ्यास करना है। डॉ.चव्हाण के अनुसार सहजयोग करने के बाद लोग पुराने और जटिल रोगों को जड़ से समाप्‍त कर चुके हैं। एक बार कुण्डलिनी जागरण हो जाता है,आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो नियमित अभ्यास के बाद हमारी वायब्रेशन शक्ति बढऩे लगती है। हम विश्व में कहीं भी बैठे अपने परिजन,रिश्तेदार की बीमारी को अपने घर बैठे ही वायब्रेशन देकर ठीक कर सकते हैं। सत्र में उन्होंने प्रश्नोत्तर के माध्यम से जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान भी किया।

(Udaipur Kiran) / ललित ज्वैल

(Udaipur Kiran) / ललित ज्वैलर्स / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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